वेदना कुछ दोहे :
गली गली में घूमते , कामुक वहशी आज। 
 नहीं सुरक्षित आजकल, बहु-बेटी की लाज।।
इतने वहशी हो गए, जाने कैसे लोग। 
 रिश्ते दूषित कर गया, कामुकता का रोग।।
पीड़ित की पीड़ा भला, क्या समझे शैतान। 
 नोच-ंनोच वहशी करे, नारी लहूलुहान।।
बेटे से बेटी बड़ी, कहने की है बात। 
 बेटी सहती उम्र भर , अनचाहे आघात।।
नारी का कामी करें, छलनी हर सम्मान। 
 आदिकाल से आज तक, सहती वो अपमान ।।
सुशील सरना 
 मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुश्आहेल सरना जी, आपने नारी की वेदना को बखूबी चित्रित किया है कृपया अंतिम पद देख लें
नारी सहे अपमान १२ मात्राएँ हो रही हैं मेरी समझ से. सादर
आदरणीय सुशील सरना जी, अत्यंत सुंदर दोहे। बधाई स्वीकार करें।
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । सुन्दर समसामयिक दोहे हुए है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब वेदना को रूपांतरित करते हुए शानदार दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।
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