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आज दिल उसके दुख से दुखी है मेरा
जो किसी का नहीं अब वही है मेरा (1)
मौत मुझको बुलाती है हर पल मगर
ज़िंदगी रास्ता रोकती है मेरा (2)
लिख न पाऊँगा मैं आज क्या हो गया
मौत से सामना आज भी है मेरा (3)
डगमगाते हैं जब भी क़दम ये मिरे
यार मंज़िल पता पूछती है मेरा (4)
रख दिया है मुझे आग के सामने
जानता है बदन काग़ज़ी है मेरा (5)
रोक सकता नहीं रथ के पहिए कोई
अब ख़ुदा जंग में सारथी है मेरा (6)
ज़िंदगी मेरी सुनती नहीं आजकल
मौत भी कब कहा मानती है मेरा (7)
जानता ही नहीं वो मुझे आज तक
यार 'सालिक' वही अजनबी है मेरा (8)
* मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय...
उस्ताद -ए -मुहतरम समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.आपकी क़ीमती इस्लाह पर तामील हो गई है जनाब। शुक्रिय :
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'मौत हर दम बुलाती रही है मुझे
ज़िंदगी रास्ता रोकती है मेरा'
उचित लगे तो ऊला यूँ कर लें:-
'मौत मुझको बुलाती है हर पल मगर'
'मंज़िलें रास्ता पूछती है मेरा'
इस मिसरे में 'मंज़िलें' बहुवचन है इस कारण रदीफ़ 'है मेरा' की जगह "हैं मेरा" हो रही है, इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं:-
'यार मंज़िल पता पूछती है मेरा'
मुहतरमा अंजलि गुप्ता जी.
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.
उस्ताद जी से इस्लाह के बाद मतला यूँ पढ़ा जाए...
आज दिल उसके दुख से दुखी है मेरा
जो किसी का नहीं अब वही है मेरा
आदरणीय चेतन प्रकाश जी.
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.
आपने सहीह फरमाया मुहतरम. मतला यूँ पढ़ा जाए...।
आज दिल उसके दुख से दुखी है मेरा
जो किसी का नहीं अब वही है मेरा
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी.
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ.
बह्रे मुतदारिक मुसम्मन सालिम मे कही हुई अच्छी ग़ज़ल ! बंधुवर सालिक गणवीर जी बधाई स्वीकार करें । मतला कानों को थोड़ा खटकता है, मुआफ करें, मगर मुझे लगा सानी मिसरे का प्रवाह कहीं बाधित है।
आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
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