2122/1212/22
1
साँप बनकर जो डस रहा है मुझे
दोस्त कह कर पुकारता है मुझे
2
उसका लहज़ा बता रहा है मुझे
अब न पहले सा चाहता है मुझे
3
दिल के चैन ओ सुकून की खातिर
ख़ुद को ख़ुद में ही ढूँढना है मुझे
4
हर घड़ी जिसको दिल में रखता हूँ
वो ही अंजान कह रहा है मुझे
5
क्यों पराया हुआ मैं अपनों में
यह सवाल अब भी सालता है मुझे
6
मय-कदे से उठा वो यह कह कर
घर भी 'निर्मल' सँभालना है मुझे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया अमीरुद्दीन'अमीर'जी नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए आभार।
आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी, हौसला बढ़ाने के लिए आभार।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ, उस्ताद मुहतरम की इस्लाह पर ग़ौर कीजियेगा। सादर।
वाह बहुत खूब।, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई।
आदरणीय आज़ी तमाम जी नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए आपकी आभारी हूँ।
आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। सर् ग़ज़ल पर इस्लाह देने के लिए बेहद शुक्रिय:। सर्,अब यह ग़लती याद रहेगी।इसे फेयर में ठीक कर लेती हूँ।सादर।
आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'जी नमस्कार। भाई हौसला बढ़ाने के लिए आपकी आभारी हूँ।
आ. रचना बहन , सादर अभिवादन । गजल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'दिल के चैन ओ सुकून की खातिर
ख़ुद को ख़ुद में ही ढूँढना है मुझे'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'चैन' हिन्दी भाषा का शब्द है, इसलिये इज़ाफ़त का इस्तेमाल मुनासिब नहीं, पहले भी बताया जा चुका है, ऊला यूँ कह सकती हैं:-
'अपने दिल के सुकून की ख़ातिर
ग़लत कमेन्ट कर दिया ,क्षमा ।
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