For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कच्ची कलियाँ क्यों मरती - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२


काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे
आ जाते हम  यार  ठाँव को धीरे धीरे।१।
*
कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता  अगर  छाँव को धीरे धीरे।२।
*
खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे।३।
*
कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन
पेट देश के लगी  आँव को धीरे धीरे।४।
*
जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो चलते हैं  सोच  दाँव  को धीरे धीरे।५।
*
कोयल सा ही शायद वो भी प्यारा हो
कौवा बोले अगर काँव को धीरे धीरे।६।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 837

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2021 at 4:56pm

आ. भाई बृजेश कुमार जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व  केे लिए  हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2021 at 4:54pm

आ. भाई समर जी सादर अभिवादन । गजल पर पुनः उपस्थिति व छूटी गलतियों को बताने के लिए आभार ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2021 at 10:09pm

अहा...क्या कहने आदरणीय बेहद खूबसूरत...हर शे'र एक से बढ़कर एक..बधाई

काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे
आ जाते हम  यार  ठाँव को धीरे धीरे। वाह वाह

Comment by Samar kabeer on February 18, 2021 at 7:27pm

'कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ'

इस मिसरे में 'मरती' को "मरतीं'' कर लें ।

'कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन'

इस मिसरे में 1 फ़ा अधिक है,देखें ।

बाक़ी सुधार ठीक हैं ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2021 at 9:06pm

आ. भाई समर जी, बदलाव किया है , देखिएगा

२२२२/२२२२/२२२
काँटा चुभता यदि पाँव को धीरे धीरे
हम आ ही जाते  ठाँव को धीरे धीरे।१।
*
कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता  यदि  छाँव को धीरे धीरे।२।
*
खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगले नित्य नगर गाँव को धीरे धीरे।३।
*
कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन
देश के पेट लगी आँव को धीरे धीरे।४।
*
जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो सोच के चलते  दाँव  को धीरे धीरे।५।
*
कोयल सा ही शायद वो भी प्यारा हो
कौवा बोले यदि  काँव  को धीरे धीरे।६।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2021 at 5:54am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व मार्गदर्शन के लिए आभार । सुधार का प्रयास कर पुनः उपस्थित होता हूँ। सादर.

Comment by Samar kabeer on February 15, 2021 at 6:13pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे'

इस मिसरे में पहली बात ये कि 'को' की जगह "में'' शब्द की ज़रूरत है, दूसरी बात ये कि काँटा चुभता धीरे धीरे तार्किकता की दृष्टि से ठीक नहीं लगता, ग़ौर करें ।

'कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता  अगर  छाँव को धीरे धीरे'

इस शैर के ऊला में 5 फ़ेलुन 1 फ़ा यानी एक 2 कम है,सानी मिसरे की तक़ती'अ कर के बताने का कष्ट करें ।

'खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे'

इस शैर के ऊला में भी एक 2 कम है,और सानी की तक़ती'अ कैसे होगी?  बताने का कष्ट करें ।

'पेट देश के लगी  आँव को धीरे धीरे'

इस मिसरे की तक़ती'अ कैसे होगी? बताने का कष्ट करें ।

'जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो चलते हैं  सोच  दाँव  को धीरे धीरे'

इस मिसरे के ऊला में भी एक 2 कम है,और सानी की तक़ती'अ कैसे होगी? बताने का कष्ट करें ।

'कोयल सा ही शायद वो भी प्यारा हो
कौवा बोले अगर काँव को धीरे धीरे'

इस शैर के ऊला में भी एक 2 कम है,सानी की तक़ती'अ कैसे होगी? बताने का कष्ट करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 15, 2021 at 9:10am

आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार।

Comment by Aazi Tamaam on February 15, 2021 at 2:49am

बेहद ही मधुर लयबद्ध किया है शुक्रिया मुसाफिर जी

अच्छी रचना है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service