काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे
आ जाते हम यार ठाँव को धीरे धीरे।१।
*
कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता अगर छाँव को धीरे धीरे।२।
*
खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे।३।
*
कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन
पेट देश के लगी आँव को धीरे धीरे।४।
*
जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो चलते हैं सोच दाँव को धीरे धीरे।५।
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कोयल सा ही शायद वो भी प्यारा हो
कौवा बोले अगर काँव को धीरे धीरे।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई बृजेश कुमार जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व केे लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई समर जी सादर अभिवादन । गजल पर पुनः उपस्थिति व छूटी गलतियों को बताने के लिए आभार ।
अहा...क्या कहने आदरणीय बेहद खूबसूरत...हर शे'र एक से बढ़कर एक..बधाई
काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे
आ जाते हम यार ठाँव को धीरे धीरे। वाह वाह
'कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ'
इस मिसरे में 'मरती' को "मरतीं'' कर लें ।
'कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन'
इस मिसरे में 1 फ़ा अधिक है,देखें ।
बाक़ी सुधार ठीक हैं ।
आ. भाई समर जी, बदलाव किया है , देखिएगा
२२२२/२२२२/२२२
काँटा चुभता यदि पाँव को धीरे धीरे
हम आ ही जाते ठाँव को धीरे धीरे।१।
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कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता यदि छाँव को धीरे धीरे।२।
*
खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगले नित्य नगर गाँव को धीरे धीरे।३।
*
कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन
देश के पेट लगी आँव को धीरे धीरे।४।
*
जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो सोच के चलते दाँव को धीरे धीरे।५।
*
कोयल सा ही शायद वो भी प्यारा हो
कौवा बोले यदि काँव को धीरे धीरे।६।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व मार्गदर्शन के लिए आभार । सुधार का प्रयास कर पुनः उपस्थित होता हूँ। सादर.
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे'
इस मिसरे में पहली बात ये कि 'को' की जगह "में'' शब्द की ज़रूरत है, दूसरी बात ये कि काँटा चुभता धीरे धीरे तार्किकता की दृष्टि से ठीक नहीं लगता, ग़ौर करें ।
'कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता अगर छाँव को धीरे धीरे'
इस शैर के ऊला में 5 फ़ेलुन 1 फ़ा यानी एक 2 कम है,सानी मिसरे की तक़ती'अ कर के बताने का कष्ट करें ।
'खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे'
इस शैर के ऊला में भी एक 2 कम है,और सानी की तक़ती'अ कैसे होगी? बताने का कष्ट करें ।
'पेट देश के लगी आँव को धीरे धीरे'
इस मिसरे की तक़ती'अ कैसे होगी? बताने का कष्ट करें ।
'जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो चलते हैं सोच दाँव को धीरे धीरे'
इस मिसरे के ऊला में भी एक 2 कम है,और सानी की तक़ती'अ कैसे होगी? बताने का कष्ट करें ।
'कोयल सा ही शायद वो भी प्यारा हो
कौवा बोले अगर काँव को धीरे धीरे'
इस शैर के ऊला में भी एक 2 कम है,सानी की तक़ती'अ कैसे होगी? बताने का कष्ट करें ।
आ. भाई आज़ी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार।
बेहद ही मधुर लयबद्ध किया है शुक्रिया मुसाफिर जी
अच्छी रचना है
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