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वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ

रणभेरी बजने से पहले अच्छा है तुम घर जाओ
वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ

कितनी ही आशाएं तुमसे लगी हुई है, टूटेंगीं
कितनी ही तकदीरें तुमसे जुड़ी हुई हैं, रूठेगीं


तेरे पीछे मुड़ जाने से कितने सिर झुक जाएंगे
कितने प्राण कलंकित होंगे कितने कल रुक जाएंगे


उतर गए हो बीच समर तो कौशल भी दिखला जाओ
हिम्मत के बादल बन कर तुम विपदाओं पर छा जाओ

तप कर और प्रबल बनकर तुम शोलों बीच सँवर जाओ
वरना पीठ दिखाने से तो अच्छा है तुम मर जाओ 

आशीष यादव 

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by आशीष यादव on May 31, 2021 at 11:19pm

आदरणीय श्री Chetan Prakash  सर प्रणाम,
सर मैंने केवल अपने मनोभावों को कलमबद्ध करने की कोशिश की है। मुझे 'नगमा' इत्यादि के बारे में जानकारी नहीं है।
आपसे प्रार्थना है कि कृपया उचित मार्गदर्शन करें।

Comment by आशीष यादव on May 31, 2021 at 11:13pm

आदरणीय श्री Aazi Tamaam सर, बहुत बहुत धन्यवाद। 

Comment by आशीष यादव on May 31, 2021 at 11:12pm

आदरणीय श्री लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर  सर कविता पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by Samar kabeer on May 31, 2021 at 2:42pm

जनाब आशीष जी आदाब, रचना का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

ये रचना किस विधा में है? बताने का कष्ट करें ।

Comment by Chetan Prakash on May 29, 2021 at 1:32pm
  • आदाब, भाई, आशीष  ! रचना  को आप अपने मन से  ही 'नगमा' कह रहे हैं, अथवा कोई  माडल दृष्टिगत  रखकर  आपने अपनी  रचना  का नाम करण 'नगमा  किया  है ! मैंने  कम से कम इस  फार्मेट  कोई  नगमा  नहीं देखा ! कृपया मार्ग दर्शन करें !
Comment by Aazi Tamaam on May 28, 2021 at 9:08am

सुंदर रचना है सहृदय बधाई आ आशीष जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 28, 2021 at 8:53am

आ. भाई आशीष जी, वीररस की सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई.

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