मन का साहिल ......
जाने कब मेरे अन्तस में
भावनाओं का सागर उफान मारने लगा
भावों की वीचियों पर
चाहत की कश्ती
अठखेलियां करने लगी
दिल के किसी कोने में
एक चाहत उभरी
कि मैं हौले से छू लूँ
फिर वही
अधर दलों पर ठहरी
उल्फ़त की गंध
चुपके से
डूब जाऊँ
किसी मदहोश भंवरे की तरह
पुष्प आगोश में
पराग का रसपान करते हुए
आकंठ तक
और मिल जाए
मेरी चाहत की कश्ती को
मेरे मन का साहिल
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरना जी
सादर अभिवादन। आपकी अस्वस्थता के बारे में अभी टिप्पणियाँ पढकर पता चला।खुशी हुई जानकर कि अब सब ठीक है। आपकी रचना हमेशा की तरह गहन और खूबसूरत एहसासों वाली है। हार्दिक बधाई
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
अब आपकी तबीअत कैसी है?
जनाब सुशील सरना जी आदाब, सुंदर, मनोहारी सृजन के लिए बधाई प्रस्तुत करता हूँ। कोरोना से उबर आने के लिए आपको सपरिवार विशेष बधाईयाँ। सादर।
आप स्वस्थ हैं यह हमारे लिए हर्ष का विषय है । सादर..
आ. भाई सुशील जी, सुन्दर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
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