For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुलगते अँधेरे . . .

सुलगते अँधेरे  .......

न जाने आज
मन इतना उदास क्यों है
लगता है
स्मृतियों की सीलन से
मन की दीवारें
भुरभुरा सी गई हैं

यादों के पारदर्शी प्रतिबिम्ब
जैसे गिरती दीवारों पर
मन की बेबसी पर
अट्टहास लगा लगा रहे हों

कितनी ढीठ है
ये बरसाती हवा
जानती है मेरी आकुलता को
फिर भी मुझे छू कर
मुझसे मेरा हाल पूछती है

अब अच्छी नहीं लगतीं मुझे
आहटें
मन के वातायन पर गूँजती
बेसुरी दस्तक की थपथपाहट
मेरी प्रतीक्षा को
बार-बार पुनर्जीवित कर जाती है

डरती हूँ
मन की गिरती हुई
भुरभुरी दीवारों के नीचे
दब कर न रह जाए
मेरी प्रतीक्षा

शायद इसीलिए
आज मेरे मन में
उदासियों के डेरे हैं
सुलगते अँधेरे हैं
बुझे- बुझे सवेरे हैं

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 607

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on July 18, 2021 at 12:21pm
आदरणीय समर कबीर जी आदाब सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय जी । सर अभी एडिट करता हूँ ।हार्दिक आभार सर ।
Comment by Samar kabeer on July 17, 2021 at 7:06pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

अन्धेरे --''अँधरे''

'अब अच्छी नहीं लगती मुझे
आहटें'

इस पंक्ति में 'लगती' को "लगतीं" कर लें ।

Comment by Sushil Sarna on July 16, 2021 at 12:59pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by Sushil Sarna on July 16, 2021 at 12:59pm
आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी का दिल से आभार आदरणीय । सर आपके द्वारा इंगित त्रुटि को मैंने संशोधित कर दिया है । यह असावधानी वश हुआ । इसमें मैंने नायिका की मनोदशा को दर्शाने का प्रयास किया है सर । सादर नमन
Comment by Sushil Sarna on July 16, 2021 at 12:54pm
आदरणीय अमीरुद्दीन साहिब, आदाब - सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 15, 2021 at 6:59pm

आ. भाई सुशील जी, सुंदर प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Chetan Prakash on July 14, 2021 at 2:00pm

नमस्कार, आदरणीय  ! मधुर  स्मृति ! अच्छी रचना  हुई  है, लेकिन  वर्तनी  दोष कम से कम मुझ जैसे  आपके चिर- परिचित  को आश्चर्य चकित  करते  हैं, यथा, ' प्रतिक्षा ! इसके  अतिरिक्त  आप स्वयं अपने घटित सत्य को वाणी  दे रहे अथवा  किसी स्त्री कवयित्री  की मनोदशा का वर्णन कर रहे  हैं, स्पष्ट  नहीं  हो  सका ! सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 14, 2021 at 9:08am

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, उत्तम मर्मस्पर्शी रचना हुई है, आह... बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service