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Comment
जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत दिनों बाद ओबीओ पर आपकी ग़ज़ल पढ़ने का मौक़ा मिला है ।
ग़ज़ल हमेशा की तरह आपके मिज़ाज के मुताबिक़ इंफ़िरादियत लिये हुए है,और इसकी गहराई तक हर पाठक का पहुँच पाना मुमकिन भी नहीं है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
नमस्कार, आदरणीय सौरभ साहब, ग़ज़ल प्रथम श्रेणी का काव्य है, आपकी प्रस्तुति से सम्बंधित बिम्ब प्रयोग की उपादेयता पर चर्चा / समीक्षा अनावश्यक बात है , कुछ समझ में नहीं आया, प्रभु ! सादर,,,, !
आ० चेतन प्रकाश जी आप ग़ज़ल को समझें.
ओबीओ की पाठकीयता इतनी निरीह नहीं है. या थी.
सर्वोपरि, अनावश्यक चर्चा एवं टिप्पणियों से बचें.
सादर
आदरणीय सौरभ साहब, नमन! प्रश्न सूर्य जैसे जीवन की धुरी के रुपक पर, मान्यवर आप, अपनी ग़ज़ल के माध्यम से लगा रहे हैं, और, पाठकीयता पर निरीह पाठक की योग्यता / क्षमता पर लगा रहे, बंधु-श्रेष्ठ यह अन्याय है! सादर...!
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आप की एक-पंक्तीय टिप्पणी प्राप्त हुई.
आप तो पुराने सदस्य हैं. आपसे तथ्य तार्किक तौर पर रखे जाने की अपेक्षा होगी ही.
जय-जय
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सूर्य की 'सार्वभौमिकता' और 'उस पर प्रश्न लगाया' गया है पर अब क्या कहूँ ? आपकी पाठकीयता के प्रति सादर प्रणाम.
शुभ-शुभ
नमन, सौरभ साहब, संयोग से मैंने पहली बार ही आपकी कोई ग़ज़ल देखी, अच्छी
ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें! हाँ, व्याकरण चिन्हों को लगाते आपको कुछ सावधानी ज़रूर बरतनी होगी! यथा, "सूर्य के आह्वान पर मौसम भला क्या आ गया ? " " सूर्य, ज़ाहिर है, सार्भौमिक प्रतीक है, लेकिन आप उसकी ही क्षमता पर प्रश्न लगा रहे हैं"! सादर... !
जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' साहब, आपकी दरियादली और मुखर स्वीकृति के प्रति हार्दिक धन्यवाद. आप अपनी पहली टिप्पणी को अब इसी सापेक्ष पुन: देख जायँ और अपनी हिदायत पर ग़ौर फ़रमाएँ.
आपने अपनी बात कही, मैं मुतास्सिर हूँ.
सीखना कभी खत्म नहीं होता. हमने इस पटल से बहुत कुछ सीखा है. आगे भी सीखते रहेंगे. लेकिन पाठकों से यह भी अपेक्षा करेंगे कि प्रस्तुतियों पर हठात विवेचना न करें.
आपकी वैचारिकता का स्वागत है. आपकी टिप्पणी ही आपके विचारों की परिचायक है.
हम प्रस्तुत ग़ज़ल पर तार्किक हों.
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, टिप्पणी पर आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आपका धन्यवाद। आपसे सादर निवेदन है कि कृपया मेरा शुमार रचनात्मकता से अन्याय करने वालों में न करें, क्योंकि मैं रचनात्मकता का बहुत सम्मान करता हूँ और आपका भी बहुत सम्मान करता हूँ। आपकी इस ग़ज़ल पर मेरी टिप्पणी एक पाठकीय टिप्पणी के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। हो सकता है कि एक पाठक के रूप में मुझे अभी बहुत कुछ सीखना बाक़ी हो, मगर एक बात मैं पूरी ईमानदारी और सच्चाई के साथ कहना चाहता हूँ कि मैं हमेशा हर रचनाकार की हर रचना को पूरे लिहाज़ और सम्मान के साथ पढ़ने के बाद ही टिप्पणी देता हूँ, और यहाँ भी ऐसा ही किया है, फिर भी अगर आपके या आपकी रचना के सम्मान में कोई कमी रह गई हो तो मेरी पहली ग़लती समझ कर क्षमा कर दीजिएगा। सादर।
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