तुम्हारी कुर्सी का जब है यही आधार नेता जी
कहो फिर देश की जनता लगे क्यों भार नेता जी।१।
*
सिकुड़ती देश की सीमा तुम्हें दिखती नहीं है पर
लगे करने में कुनबे का सदा अभिसार नेता जी।२।
*
जिताकर वोट से जनता बनाती दास से मालिक
जताते क्यों नहीं उस का कभी आभार नेता जी।३।
*
बने केवल धनी का ही सहारा स्वार्थवश तुम हो
बसाया कब किसी निर्धन का यूँ सन्सार नेता जी।४।
*
बचाया मान कब तुमने वतन का दुश्मनों से है
महज समझौता करने को रहे तैय्यार नेता जी।५।
*
उड़ाते मिल बहुत दावत सदा गद्दार लोगों से
तभी खलती है सैनिक की तुम्हें ललकार नेता जी।६।
*
जगत भर में हवाला का जो कारोबार करते हैं
जुड़े उनसे तुम्हारे भी कहो क्यों तार नेता जी।७।
*
जुड़े हैं आपसी हित जब मिले सत्ता किसी को भी
सदन में बस दिखावे को ही करते रार नेता जी।८।
*
उठाते हम उसी को हैं जिसे तुम तोड़ देते हो
नहीं कर कुन्द पाओगे कलम की धार नेता जी।९।
*
जलाकर राख कर देगी तुम्हारे लोभ की दुनिया
अगर बन जायेगी जनता कभी अंगार नेता जी।१०।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद । निश्चित तौर पर सुझाये गये बदलाव अच्छे हैं । आभार..
नमस्कार ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,भाई 'मुसाफिर ' साहब ! लेकिन ग़ज़ल अभी कुछ समय चाहती है ! 'अमीर ' साहब के सुझावों मैं सहमत हूँ! और एक बात भाषा पर आपकी पकड़ कभी- कभी ढीली पड़ जाती है ! यथा, दूसरे शे'र के काफिया ग़लत है! 'अभिसार' का अपेक्षाकृत बेहतर विकल्प 'विस्तार' है, कृपया देखें
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, कुछ मिसरे आंशिक परिमार्जन के आकांक्षी हैं-
तुम्हारी कुर्सी को जब है बनी आधार नेता जी
तुम्हारी कुर्सी का जब है यही आधार नेता जी
जिताकर वोट से अपने बनाती दास से मालिक
जिताकर वोट से जनता बनाती दास से मालिक
हमेशा बस धनी को ही सहारा स्वार्थवश तुम ने
हमेशा बस धनी को ही सराहा स्वार्थवश तुम ने
बचाया मान कब तुमने वतन का दुश्मनों से यूँ
बचाया मान कब तुमने वतन का दुश्मनों से ही
सदन में बस दिखावे को हो करते रार नेता जी।८।
सदन में बस दिखावे को ही करते रार नेता जी।८।
उठाते हम उसी को हैं जिसे तुम तोड़ देते हो
नहीं कर कुन्द पाओगे कलम की धार नेता जी।९। इस शे'र में ऊला मिसरे का कथ्य और ऊला मिसरे का सानी से रब्त समझ नहीं सका हूँ।
सादर।
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