22-22-22-22-22-2
तुम कोई पैग़ाम कभी तो भिजवाओ।
वरना मेरे कबूतर वापिस दे जाओ।
जिसको तुमने अपने दिल से भुलाया है,
क्या ये वाजिब है खुद उसको याद आओ ?
मैने कहा जब,तुमने दिल को ज़ख़्म दिया,
वो बोले, कितना गहरा है, दिखलाओ।
जब से तुम बिछड़े हो, खुद से दूर हूं मैं,
प्लीज़ किसी दिन मुझ को मुझ से मिलवाओ।
आंखों में हैं ख्वाब भरे, पर नींद उड़ी,
गर ये प्यार नहीं तो क्या है, समझाओ।
'वो' कब के गुलशन से बाहर जा पहुंचे,
ऐ फूलो, कुछ होश करो, मुरझा जाओ।
तारों भरे आकाश से भी सुंदर कुछ है,
ऐसा करो तुम अपनी चुनरी लहराओ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
जनाब गुरप्रीत सिंह जम्मू साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।
आ. भाई गुरप्रीत जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
भाई Gurpreet Singh jammu जी
सादर नमस्कार
बहुत उम्दः ग़ज़ल कही है आपने ,शैर दर शैर मुबारक़बाद क़ुबूल करें। कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं ,ध्यान दें. यथा हूँ ,आँखों ,पँहुचे। जहाँ तक मैं जानता हूँ ग़ज़ल में कॉमा या प्रश्नवाचक चिन्हों का इस्तेमाल नहीं होता। सादर।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नीलेश सर, आप जिस तरह हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते हैं ये उस का भी नतीजा है की थोड़ा बहुत बेहतर कहने लगा हूं।
आपने मतले में के बारे में बहुत शानदार सुझाव दिया है, *लौटाओ* बिलकुल परफेक्ट रहेगा सर जी। आपकी ग़ज़ल के लिए समझ बहुत ही लाजवाब है।
एक बात आपसे करनी है । मैं अभी कुछ अरसे के बाद obo पर आया और हाल फिलहाल की कुछ गजलें और उन पर हुई चर्चा पढ़ी। चर्चाएं होनी चाहिएं लेकिन जिस तरह कुछ चर्चाएं हुई हैं, जैसे आपकी और आदरणीय समर सर के बीच में हुई चर्चा में आपकी तरफ से जिस तरह आक्रामक लहज़े में बात रखी गई, वो अच्छा नहीं लगा, उसे पढ़कर मन दुखी हुआ। और फिर आपने इससे संबंधित कुछ गजलें भी पोस्ट की। हालांकि इन गजलों में आपने अपनी किसी मसले पर गजलियत बरकरार रखते हुए त्वरित गजल कहने की अद्भुत क्षमता के दर्शन करवाए।
आ. गुरप्रीत जी
आपकी ग़ज़ल का इंतज़ार यूँ ही नहीं रहता मुझे.. आप की ग़ज़ल बात करना जानती है ..यूँ तो हर शेर बेहतरीन हुआ है फिर भी मतले के लिए विशेष दाद लीजिये.. सानी में दे जाओ की जगह लौटाओ पर भी विचार कीजियेगा .
हासिल-ए- ग़ज़ल शेर ..
जब से तुम बिछड़े हो, खुद से दूर हूं मैं,
प्लीज़ किसी दिन मुझ को मुझ से मिलवाओ।... ढेरों दाद और दुआएँ स्वीकार कीजिये इस अच्छे शे'र के होने पर..
आग्रह है कि पोस्ट्स की फ्रीक्वेंसी बढाइये ताकि मेरा इंतज़ार इतना लम्बा न हो
बहुत बहुत बधाई
बहुत ही बढ़िया कहा आदरणीय गुरप्रीत जी...व्याकरणीय दृष्टि से तो मैं कुछ कह नहीं पाऊँगा... लेकिन भाव और कुछ अशआर की रवानगी बेहतरीन है।
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