1222 - 1222 - 1222 - 1222
फ़क़त रिश्ते जताने को यहाँ मेरी ज़रूरत है
अज़ीज़ों को सिवा इसके कहाँ मेरी ज़रूरत है
मुझे ग़म देने वाले आज मेरी राह देखेंगे
मुझे मालूम है उन को जहाँ मेरी ज़रूरत है
मेरे अपने मेरे बनकर दग़ा देते रहे मुझको
सभी को ग़ैर से रग़्बत कहाँ मेरी ज़रूरत है
लिये उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर
चला आता हूँ मैं अक्सर जहाँ मेरी ज़रूरत है
कभी इतराते हैं ख़ुद पर कभी सहमे हुए से वो
बहुत घबरा के कहते हैं कि हाँ मेरी ज़रूरत है
ज़रूरत कब रही मेरी तुम्हें ख़ुशियों के मौक़े पर
मगर.. रखने को सर काँधे पे हाँ मेरी ज़रूरत है
मेरे हाथों फ़ना मुझको ही कर डाला है जब तुम ने
बचा ही क्या है अब क्यों नागहाँ मेरी ज़रूरत है
'अमीर' अब भर चुका दिल भी तमाशा क्यों उन्हें भी तो
वही ग़ैरों की चाहत है कहाँ मेरी ज़रूरत है
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिया। सादर।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद ज़र्रा नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत शुक्रिया। सादर।
बहुत ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय अमीरुद्दीन जी..होने वाली चर्चा भी सार्थक है...
//यहाँ लगभग निरर्थक है.. इस की जगह मियाँ करेंगे तो एक नया क़वाफ़ी भी मिलेगा और मिसरा अधिक कसावट वाला लगेगा//
आपने ग़ौर नहीं किया क़वाफ़ी इस ग़ज़ल में 'अहाँ' के हैं ।
मुहतरम निलेश जी, आप की बात से मुत्तफ़िक़ हूँ, सिर्फ़ 'आँ' के क़वाफ़ी पर अशआर में नयापन और विविधता के बहुत सारे विकल्प हो सकते हैं और ग़ज़ल कहना भी इसके बनिस्पत काफ़ी आसान होता, मगर अहाँ के क़वाफ़ी पर कितनी ग़ज़लें कही गयी हैं... बहुत कम।
मुझे इस क़ाफ़िया पर ग़ज़ल कहने में भी नयापन महसूस हुआ है, और वैसे भी यह एक मुसल्सल ग़ज़ल है और इस ग़ज़ल की ज़मीन की रू से क़वाफ़ी 'अहाँ' ज़्यादा मुनासिब है।
ग़ज़ल पर आपकी आमद, मशविरे और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।
आ. समर सर,
मैंने इसीलिए मतले में बदलाव का बोला है,, उस के बाद सभी क़वाफ़ी ज्यूँ के त्यूं रह सकते हैं.
सादर
//यहाँ लगभग निरर्थक है.. इस की जगह मियाँ करेंगे तो एक नया क़वाफ़ी भी मिलेगा और मिसरा अधिक कसावट वाला लगेगा//
आपने ग़ौर नहीं किया क़वाफ़ी इस ग़ज़ल में 'अहाँ' के हैं ।
.
आ. अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ,,
मतले के ऊला में फ़क़त रिश्ते जताने को यहाँ मेरी ज़रूरत है यहाँ लगभग निरर्थक है.. इस की जगह मियाँ करेंगे तो एक नया क़वाफ़ी भी मिलेगा और मिसरा अधिक कसावट वाला लगेगा.
.
सादर
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, आँख के कामयाब आप्रेशन के बाद जल्वा अफ़रोज़ होने पर आपका ओ बी ओ पर पर हार्दिक स्वागत करते हैं। ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
इसी उम्मीद बैठे हैं... पर आपकी इस्लाह सर आँखों पर, 'मुझे ही ज़ेर करते हैं... पर भी आपसे सहमत हूँ, कुछ और सोचता हूँ। सादर।
जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'इसी उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर'
इस मिसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं,उचित लगे तो यूँ कर लें:-
'लिये उम्मीद बैठे हैं वो मेरी सादा-लौही पर'
'मुझे ही ज़ेर करते हैं मुझी से लौ लगाते फिर
वो जब घबरा के कहते हैं कि हाँ मेरी ज़रूरत है'
इस शैर के दोनों मिसरों में मुझे रब्त नहीं लगा, ग़ौर करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online