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धनी बसे परदेश में, जनधन सदा समेट।
ढकते निर्धन  लोग यूँ, यहाँ  पाँव से पेट।१।
*
कीचड़ में जब हैं सने, पाँव तलक हम दीन।
राजन  के  प्रासाद  का, क्या  देखें कालीन।२।
*
नेताओं की हर सभा, फिरे बजाती आज।
यूँ जनता है झुनझुना, भले वोट का नाज।३।
*
ऊँचे  आलीशान   हैं,  नेताओं  के  गेह।
दुहरी जिनके बोझ से, हुई देश की देह।४।
*
गूँगे बहरे लोग  जब, भरे  पड़े इस देश।
कैसे बदले बोलिए, अपना यह परिवेश।५।
*
सुख के दिन दोगे बहुत, कहते तो थे भूप।
हमें पेड़ की छाँव में, क्यों लगती पर धूप।६।
*
सच है या अफ़वाह है, राजन सुख की बात।
हम तक तो आते रहे, बस दुख के दिन रात।७।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 22, 2021 at 2:08pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on December 21, 2021 at 8:59pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छे दोहे रचे आपने, बधाई स्वीकार करें ।

'सच है या अफ़वाह है, राजन सुख की बात'

इस पंक्ति में 'अफ़वाह' शब्द में 'फ' के नीचे नुक़्ता देख कर ख़ुशी भी हुई और आश्चर्य भी ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2021 at 10:10pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, पुनः उपस्थिति के लिए आभार..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2021 at 10:09pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 15, 2021 at 10:00pm

//गूँगे बहरे लोग जब, भरे पड़े इस देश।//

बढ़िया परिमार्जन। पुन: बधाई। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2021 at 9:17pm

आ. भाई अमरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद। लोग शब्द मूलतः बहुबचन है।  इंगित दोहे में वाक्य विन्यास गड़बड़ा गया है इसलिए लय भंग हो रही है। इसे इस प्रकार से देखें - 

गूँगे बहरे लोग जब, भरे  पड़े  इस  देश।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 15, 2021 at 7:03pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।

गूँगे बहरे लोग से, भरा पड़ा जब देश।

कैसे बदले बोलिए, अपना यह परिवेश।... इस दोहे के प्रथम चरण में 'लोग' शब्द उचित नहीं है, और 'लोगों' करने से मात्रा भार ग़लत हो रहा है, 

'गूँगे बहरों से भरा, हुआ पड़ा जब देश।'    सादर।

Comment by TEJ VEER SINGH on December 15, 2021 at 12:21pm

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।बेहतरीन दोहा सप्तक।

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