For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (हँसी में उनकी हमने वो छुपा ख़ंजर नहीं देखा )

1222 - 1222 - 1222 - 1222 

हँसी में उनकी हमने वो छुपा ख़ंजर नहीं देखा 

हसीं मंज़र ही देखा था पस-ए-मंज़र नहीं देखा 

वो जैसा उनको देखा है कोई दिलबर नहीं देखा 

हसीं तो ख़ूब देखे हैं रुख़-ए-अनवर नहीं देखा 

ज़माने में कहीं तुम सा कोई ख़ुद-सर नहीं देखा 

सितमगर तो कई देखे मगर दिलबर नहीं देखा

वो मेरे ज़ाहिरी ज़ख़्मों को मुझसे पूछते हैं क्या 

दिवानों ने कभी दिल में चुभा नश्तर नहीं देखा 

जो कहते थे तुम्ही तो इक हमारे दिलमें रहते हो

न जाने क्यों उन्होंने ये दिल-ए-मुज़्तर नहीं देखा

बड़ा ग़मगीन करता है मुझे उसका बिखर जाना 

कभी मानिंद-ए-शीशा टूटता पत्थर नहीं देखा 

कहाँ लेकर ये ख़ाली हाथ मौला मैं चला जाऊँ

तेरे दर के सिवा मैंने तो कोई दर नहीं देखा 

हम अपने रब की सारी निअमतों को भूल बैठे हैं 

ज़माने में 'अमीर' इन्सान-सा ख़ुद-सर नहीं देखा 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 638

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 30, 2022 at 11:15am

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2022 at 7:09am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 14, 2022 at 1:56pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी ।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 14, 2022 at 11:59am

हार्दिक बधाई आदरणीय अमीरुददीन "अमीर" साहब जी। बेहतरीन ग़ज़ल

कहाँ लेकर ये ख़ाली हाथ मौला मैं चला जाऊँ

तेरे दर के सिवा मैंने तो कोई दर नहीं देखा ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 13, 2022 at 4:48pm

बहुत शुक्रिया जनाब आज़ी तमाम साहिब।

Comment by Aazi Tamaam on January 13, 2022 at 12:34pm

वाह आ ख़ूब ग़ज़ल हुई

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 12, 2022 at 11:26pm

//ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है आदरणीय 

बहुत बहुत बधाई

नियमानुसार बहर अवश्य लिखा करें तो अच्छा रहेगा

इस ग़ज़ल की बहर 1222×4 लग रही है//

जनाब मनोज अहसास जी ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन हेतु आभार ।

मान्यवर! नियमानुसार... किस नियम की बात कर रहे हैं आप, कृपया अवगत कराने का कष्ट करें, वैसे मेरी अधिकतर ग़ज़लों पर पर बह्र लिखी होती है, हालांकि ओ बी ओ पर ऐसा कोई नियम मेरी जानकारी में नहीं होने के बावजूद भी पाठकों और विश्लेषकों की सुविधा के लिए मैं बह्र लिखता रहा हूँ, मगर "अवश्य लिखा करें" ये आदेशात्मक आज्ञा आप उन्हें क्यों नहीं देते हैं जो अपनी ग़ज़लों पर कभी बह्र नहीं लिखते हैं?

इस ग़ज़ल की बह्र को आपने सही पहचाना है, कभी-कभी ये मशक्कत करना भी अच्छा होता है। सादर। 

Comment by मनोज अहसास on January 12, 2022 at 12:09am

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है आदरणीय 

बहुत बहुत बधाई

नियमानुसार बहर अवश्य लिखा करें तो अच्छा रहेगा

इस ग़ज़ल की बहर 1222×4 लग रही है

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service