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ग़ज़ल: सुरूर है या शबाब है ये

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सुरूर है या शबाब है ये

के जो भी है ला जवाब है ये

फ़क़ीर की है या पीर की है

के चश्म जो आब-ओ-ताब है ये

कज़ा है अगर सरक गया तो

जो चेहरे पे नकाब है ये

अजीब है सफ़ह-ए-ज़िंदगी भी

न पूछो की क्या जनाब है ये

कभी है ख़ुशी तो है कभी ग़म

बस एक ऐसी किताब है ये

हैं अश्क से आज चश्म जो नम

महब्बतों का हिसाब है ये

न जाने कोई है माज़रा क्या

की ज़िंदगी है या ख़्वाब है ये

वो आये और आ के चल दिये हैं

है रुख़्सती या अज़ाब है ये

कटार हैं आँखें नर्म हैं लब

के हुस्न है या गुलाब है ये

न होश में हैं न होश है गुम

न जाने कैसी शराब है ये

न पी के भी जिसको पी सके ग़म

वो आग है वो इताब है ये

न बुझ सकी है न लग सकी है

के दिल्लगी भी उजाब है ये

बदन में यूँ रूह सिक रही है

के हसरतों की कबाब है ये

जो ढल रहे हैं इक उम्र से अब

के ख़्वाहिशों का दबाब है ये

न जी सके हैं न मर सके हैं

अजीब ही इज़्तिराब है ये

जो ज़िस्म ये संग-ए-मरमरी है

ज़मीन पे माहताब है ये

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Aazi Tamaam on June 7, 2022 at 5:10pm

प्रणाम आ गुरु जी ग़ज़ल तक आने व बारीकी से इस्लाह देने और मार्गदर्शन करने के लिए मैं तहे दिल से आपका आभार व्यक्त करता हूँ

जी गुरु जी मैं अब ज्यादा वक़्त पढ़ाई को ही देता हूँ पर कभी कभी मन नहीं मानता तो मन को शांत करने के लिए मजबूरीबस कुछ लिखने का प्रयास कर लेता हूँ

 गुरु जी आप का पुनः दिल से आभार

मैं कोशिश करूँगा पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दे सकूँ

सादर

Comment by Samar kabeer on June 7, 2022 at 4:59pm

जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, इस बह्र पर ग़ज़ल कहना आसान नहीं है, फिर भी पने प्रयास किया इसके लिये बधाई I 

फ़क़ीर की है या पीर की है

के चश्म जो आब-ओ-ताब है ये-- इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ,और सानी का वाक्य विन्यास भी दुरुस्त नहीं है,देखिएगा I 

जो चेहरे पे नकाब है ये-- ये मिसरा बह्र में नहीं है, देखिएगा I 

अजीब है सफ़ह-ए-ज़िंदगी भी--इस मिसरे में रवानी नहीं है I 

कटार हैं आँखें नर्म हैं लब

के हुस्न है या गुलाब है ये--इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं और सानी में सहीह शब्द "हश्र " है I 

बदन में यूँ रूह सिक रही है

के हसरतों की कबाब है ये--दोनों मिसरों में रब्त नहीं और सानी में 'कबाब' शब्द पुल्लिंग है I 

बाक़ी के अशआर भी बस क़फ़िया पैमाई है , आपको पहले भी समझाया था कि मारुफ़ बह्र में ही प्रयास करें और अभी सिर्फ़ अपनी पढाई पर ध्यान दें I  

Comment by Aazi Tamaam on June 1, 2022 at 3:29pm

हौसला अफ़ज़ाई के लिए आ धामी सर का हृदय से स्वागत है

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 31, 2022 at 6:53pm

आ. भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Aazi Tamaam on May 27, 2022 at 10:10pm

आ सूबे जी ग़ज़ल तक आने व हौसला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया

Comment by Aazi Tamaam on May 27, 2022 at 10:09pm

 आ gumnaam ji हौसला अफ़ज़ाई व ग़ज़ल तक आने के लिए सहृदय शुक्रिया

सादर 

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 27, 2022 at 4:42pm

अरे वाह वाह वाह बहुत खूब लिखा है

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 25, 2022 at 10:20am

वाह बहुत खूब गजल हुई है । बधाई .. 

Comment by Aazi Tamaam on May 24, 2022 at 6:06am

 सहृदय शुक्रिया आ अरुण जी ग़ज़ल तक आने व हौसला अफ़ज़ाई करने के लिए

सादर

Comment by DR ARUN KUMAR SHASTRI on May 23, 2022 at 10:11pm

 Aazi Tamaam सहिब कमाल की गजल पेश करी वाह वाह आपका इकबाल बुलन्द रहे जनाब मुझे बेहद पसंद आई 

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