२१२ १२१२ १२१२ १२१२
चाहता रहा उसे मगर न बोल पा रहा
उम्र बीतती रही मलाल सालता रहा
जिंदगी की दोपहर अगर-मगर में रह गयी
शाम की ढलान पर किसे पुकारता रहा ?
बाद मुद्दतों दिखा.. हवा सिहर-सिहर गयी
मन गया कहाँ-कहाँ, मैं बस वहीं खड़ा रहा
आयी और छू गयी कि ये गयी कि वो गयी
मैं इधर हवा-छुआ खुमार में पड़ा रहा
रौशनी से लिख रखा है खुश्बुओं में डूब कर
खत तुम्हारे नाम का.. लिफाफा बेपता रहा !
बादलो, इधर न आ मुझे न चाहिए नमी
आग जो सुलग रही उसे अभी बढ़ा रहा..
यार मेरा चाँद है व शुक्ल के हैं पक्ष हम
किंतु अपने भाल का वो दाग क्यों दिखा रहा ?
***
सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय, आपकी चिंता जायज है. लेकिन 'रुको जरा..' भी तो उस लिहाज से एकवचन को संबोधित क्रिया हो गयी न ? जबकि, जैसा आपने कहा, कि बादल की संज्ञा यहाँ बहुवचन है. फिर तो ऐसे में 'बादलो, रुकें जरा..' कहना होगा.
खैर, अब मैं व्याकरण और भाषाई चलन पर आता हूँ.
जब कोई समूहवाचक संज्ञा एक इकाई की तरह प्रयुक्त होती है, तो उससे सम्बन्धित संबोधन और क्रिया एकवचन में ही नियोजित होती हैं.
कुछेक उदाहरण देखें,
पूरी कौम सुन ले !
भाइयो, जुट जाओ ! .. आदि
इसी क्रम में, बादलो, इधर न आ..
विश्वास है, व्याकरण और भाषाई चलन सम्बन्धी तथ्य को मैं अपेक्षानुरूप स्पष्ट कर पाया.
सादर
आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल पर आपकी मनभावन रचना पढ़कर मन हर्षित हुआ। हार्दिक बधाई।
आदरणीय मेरा इशारा वाक्य विन्यास की ओर था,
बादलो, इधर न आ.... या बादलो रुको ज़रा... दोनों में ही आग्रह है।
परन्तु ध्यातव्य है कि 'बादलो, इधर न आ' में बदलो बहुवचन है जबकि आग्रह (इधर न आ) किसी एक से किया गया है। सादर।
उत्साहवर्द्धन के लिए आपका सादर धन्यवाद, आदरणीय अमीरुद्दीन ’अमीर’ बागपतवी जी.
आपको कहे गये अश’आर अच्छे लगे, इससे मन अभिभूत है.
बादलो, रुको जरा..
आदरणीय, मैं अदना कौन होता हूँ, बादलों की प्रकृति और उनके कार्य में दखल देने वाला ? वे तो प्राकृतिक रूप से घुमंतू हैं. चाहे जहाँ आएँ-जाएँ. मेरे जैसे तो बस उनसे निवेदन कर सकते हैं. नम्र आग्रह कर सकते हैं कि वे चाहे जहाँ जाएँ, मेरी तरफ न आएँ.
विश्वास है, बादलों से हुआ मेरा निवेदन अब उचित प्रतीत हो रहा होगा.
पुनः, हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब, हज़ज मुरब्बा अश्तर मक़्बूज़ बह्र, अरकान- (फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन) में कही गई ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
'बादलो, इधर न आ'... बादलो रुको ज़रा। सादर।
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