दर्द है तो कभी दवा है ये,
इश्क़ है या कि मोजज़ा है ये.
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जो बिख़रने का सिलसिला है ये
ख़ुशबू होने ही की सज़ा है ये.
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हम जो रोते हैं कुफ़्र होता है
मज़हब-ए-इश्क़ में मना है ये.
.
अपनी ताक़त को वो समझता है
हुस्न के साथ मसअला है ये.
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ख़त भला तेरा मैं जलाऊँगा?
आँसुओं से भभक गया है ये.
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हम तो फिरऔन इसको कहते हैं
ये समझता रहे ख़ुदा है ये.
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ग़म यहीं है यहीं कहीं होगा
तेरे देखे से छुप गया है ये.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आ. गुरप्रीत जी.
आप की टिप्पणी शायद पुन: ग़ज़लों की तरफ प्रवृत्त कर सके
धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी
आदरणीय निलेश सर जी। आपकी यह ग़ज़ल आज पढ़ी। आपकी ग़ज़ल का बहुत समय से इंतजार था। सच में इंतजार का फल मीठा होता है। किस शेर का जिक्र करें। सभी अशआर एक से बढ़कर एक। आखरी शेर तो उफ्फ जानलेवा है।
और फिर ये।
हम जो रोते हैं कुफ़्र होता है
मज़हब-ए-इश्क़ में मना है ये
जो बिख़रने का सिलसिला है ये
ख़ुशबू होने ही की सज़ा है ये.
.
अपनी ताक़त को वो समझता है
हुस्न के साथ मसअला है ये.
.
वाह सर जी आपकी सोच का दायरा कहां कहां तक फैला है।
इस बहुत खुबसूरत और ग़ज़ल कहने के लिए प्रेरित करने वाली ग़ज़ल के लिए दिल से दाद।
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
धन्यवाद आ. महेंद्र जी,
मना पर विस्तृत जवाब नीचे कमेंट में है ..
सादर
धन्यवाद आ. बृजेश जी
आ. रवि जी,
ग़ज़ल पर आने का शुक्रिया.. समर सर की बात से कोई इनकार नहीं है लेकिन भाषा जिस तरह एवोल्व होती है मैं भी उसी तरह के शब्द इस्तेमाल करता हूँ.. पूरा उर्दू साहित्य स्कूल को इस्कूल पढ़ कर फूला नहीं समाता है .. पत्थर और मंदिर को एक काफ़िये में बाँधता है ...सुधार की आवश्यकता वहां है..मैं अगर मना को मना लिख रहा हूँ तो यह जानते हुए लिख रहा हूँ कि विरोध होगा क्यूँ कि 99% हिन्दी समझने वाले कभी मना को मनअ नहीं पढ़ेंगे..
संस्कृत शब्द तृष्णा अगर तिश्ना हो सकता है तो मना को मना लिखने से कौन रोक सकता है ??
आभार
धन्यवाद आ. चेतन प्रकाश साहब ..
कार्य कि व्यस्तता मुशायरे में भाग नहीं लेने दे रही. उम्मीद है अगली बार आ सकूं
आभार
आ. निलेश जी, ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। "मन'अ" के सन्दर्भ में मैं आ. समर सर से सहमत हूँ। इस पर आ.रवि भसीन जी ने मज़बूत तर्क रखा है। पूर्व में मैंने भी कई शब्दों को उनके ग़लत रूप में बरता है पर आ. समर सर के टोकने के बाद उन्हें बदल दिया या ख़ारिज कर दिया। विचार कीजिएगा। सादर।
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय नीलेश जी...
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