राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी
मानस भवन में आरय़जन जिसकी उतारे आरती।
भगवान भारतव्रष में गूंजें हमारी भारती।।
हिंदी साहित्य के राष्ट्र कवि पद्मभूषण से सम्मानित श्री मैथलीशरण गुप्त जी का जन्म ३ अगस्त,१८८५ में उत्तर प्रदेश के जिला झाँसी के चिरगांव में हुआ था.हम सब प्रतिवर्ष जयंती को कवि दिवस के रूप में मनाते हैं.अपनी पहली काव्य रचना 'रंग में भंग'रचने वाले गुप्त जी को मूल्यों के प्रति आस्था के अग्रदूत दद्दा के नाम से विख्यात हुए.इस विख्यात रचनाकार का विषय भारतीय संस्कृति और देश निवासियों के ह्रदय में गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आजादी की व्हींगारी फूकना थीभारतीय संस्कृति की गैरव गाथा का गुणगान करने वाले कवि को उनकी चंद रचनाओं के प्रेरित भाव के रूप में श्रद्धा सुमन अर्पित-
अंग्रेजों की दासता ,उनके अत्याचारों से ग्रसित देशवासियों और दुर्दशा का 'भारत भारती' में मनुष्य के अस्तित्व को झंझोड़ते हुए कहा था- 'हम कौन थे,क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी'.देश की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करती ये कविता ना केवल मानव को एक जुट होकर गुलामी की जंजीरे तोड़ने का आह्वान करती हैं,बल्कि मानव जागरण को शक्ति प्रदान करती हैं.इस काव्य में भारतीय संस्कृति का ऐतिहासिक दस्तावेज है,वही 'यशोधरा 'में नारी की दयनीय दशा का वर्णन 'अबला जीवन हाय,यही तुम्हारी कहानी,आँचल में हैं दूध,आँखों में हैं पानी,' करते हुए नारी के हक में आवाज उठाते हुए कहा हैं कि 'सखी ,वे मुझसे कहकर जाते,तो क्या वे मुझको अपनी पगबाधा पाते,'पंक्तियाँ उल्लेखित करती हैं कि मैं इतनी भी कमजोर,भावुक नहीं हूँ कि तुम्हारे रास्ते का रोड़ा बनती. त्याग, बलिदान को बताती पंक्तियाँ - 'मानस मंदिर में सती,पति की प्रतिमा थाप,'साकेत'काव्य में वर्णित किया हैं.नारी की महत्वता बताते हुए कहा हैं कि नारी तो दो किलो की रक्षक ,दीपक,.रखवाली होती हैं.आधुनिकता की दौड़ में भागती नारी में माँ-बच्चों के एहसास के विस्मृत होते रिश्तो को 'माँ,कह एक कहानी' में प्रति कर्तज्ञता का भाव जगाया हैं.जनजागरण करती कविता में देशवासियों को देश के उत्थान को उल्लेखित पंक्तियाँ समृद्ध संस्कृति को बताती हैं- 'जो ऋषि भूमि हैं,वह कौन हैं,भट वर्ष हैं,'स्वदेश का अनुराग अलापते गुप्त जी ने किसान,गरीब संस्कृति,मानवीय स्थिति और उसके संघर्षमयी जीवन में हिम्मत से काम लेने की प्रेरणा देती कविता- 'नर हो न निराश करो मन को,'हैं.तो दूसरी तरफ मृत्यु के भी का सामने करने वाली कविता 'जीवन की जय हो.'जिसमे कवि ने समय का सदुपयोग करने पर भी जोर दिया हैं.भारतीय संस्कृति का ऐतिहासिक दस्तवेज 'भारत भारती 'में कहा हैं - हमे मृत्यु नहीं डरना चाहिए,आत्मा अमर हैं ,शरीर नश्वर हैं,इसलिए मूलयवान समय का सदुपयोग करना व्हाहिये।वही उपेक्षित व्यक्ति की गाथा 'विष्णु प्रिया'में किया हैं तो दूसरी और धरती पर स्वर्ग बनाने के अभिलाषी दद्दा जी ने अपनी बात कही हैं कि हमे इसे स्वर्ग बनाना होगा,क्योकि स्वर्ग लाया नहीं जा सकता - 'संदेश नहीं मैं यहांसवर्ग को लाया,इस भूतल की ही स्वर्ग बनाने आया.'देश में ही नहीं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हमारे देश का,,देशवासियों के कार्यों का गुंजायमान हो.
अंततः हमे इस भागते जीवन में गुप्त जी की रचनाओं का अपने जीवन में समावेश करनी चाहिए ,तभी हमारा अस्तित्व ,हमारी संस्कृति -सभ्यता,रिश्ते,बच सकेंगे।
दद्दा के नाम से विख्यात व महान रचनाकार को शत-शत नमन.......
स्वरचित व अप्रकाशित हैं
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online