ये कैसा व्यापार हुआ,
दुश्मन सारा बाज़ार हुआ |
दिल लेकर दिल दे बैठे तो,
क्यूँ जग में हाहाकार हुआ|
इश्क़ अजब ही नदी है साहिब
यहाँ जो डूबा सो पार हुआ|
दीदों को न भाया तब से कुछ
जब से उनका दीदार हुआ|
अब दवा इश्क़ की कौन करे
है हर कोई बीमार हुआ |
पहले था काम का "विक्रम" भी
जो इश्क़ मे है बेकार हुआ|
Comment
आप इस बह्र का नाम जानना चाहते हैं ?
हाँ जी.. .
सौरभ जी,
बह्र को २२२२ २२२२ बिलकुल किया जा सकता है
मगर आप इस बह्र की ग़ज़लों में अक्सर दीर्घ को विषम संख्या में ही पायेंगे जैसे २२२२ २२२ ,, २२२२ २२२२ २ ,,, २२२२ २२२२ २२२ आदि
कारण है लयात्मकता
(इस बह्र में सारा खेल लयात्मकता का है,, नियमानुसार यदि आप बह्र में है मगर लय टूट रही है तो भी शेर बह्र के लिहाज़ से खारिज हो जायेगा)
जब दीर्घ को ७,९, ११, १३, १५ आदि बार रखा जाता है तो लयात्मकता ज्यादा होती है
एक और बात है जो लयात्मकता के लिहाज़ से जरूरी है कि इस बह्र में जो बड़ी छूट १+१ = २ की मिलती है उसे किसी भी जगह इस्तेमाल कर लेने से भी लयात्मकता भंग होती है
१+१ =२ को कोशिश करके रुक्न के दूसरे दीर्घ में रखा जाना चाहिए अर्थात इस स्थान पर = ( २ १+१ २२ )
और दुसरे रुक्न में भी यही स्थिति होनी चाहिए जैसे = २ २ २ २ / २ १+१ २
अर्थात आप यदि इस बह्र (२२२२ / २२२ ) में १+१ =२ की छूट लेना चाहते हैं तो उसे इस स्थान पर ही लें तो लयात्मकता भंग नहीं होती
२१+१२२ / २१+१२२ / २१+१२२ / २१+१२
यदि इस छूट को हम इन स्थानों पर लेते हैं तो लय भंग होने का खतरा ज्यादा रहता है =
१+१ २२२
२२ १+१ २
२२२ १+१
आप चाहें तो आजमा कर देखें ...
इस बह्र पर आगे की बात फिर कभी ...
कृपया कहें कि २२२२ २२२ क्या बह्र है?
आप इस बह्र का नाम जानना चाहते हैं ?
बह्र को २२२२ २२२२ क्यों न बना दें. मतले में आखिर में है भर जोड़ना है. कृपया कहें कि २२२२ २२२ क्या बह्र है?
सभी आदरणीय से विनम्र निवेदन है कि यदि विक्रम जी को प्रोत्साहित करना है तो उनकी रचना में कमियों को बताने साथ साथ उन्हें कैसे सुधार जाए इस पर भी चर्चा होनी चाहिए थी
एक तुच्छ प्रयास कर रहा हूँ निवेदन है कि इस चर्चा को आगे बढ़ाएँ जिससे कि गाठें खुलें और नव आगंतुक इस पेचीदा बह्र (छंद) की बारीकी को सीख / जान सकें
(२२२२ / २२२)
ये कैसा व्यापार हुआ,
दुश्मन अब बाज़ार हुआ |
हम दिल क्या ले - दे बैढे
जग में हाहाकार हुआ|
इश्क़ अजब दरिया साहिब
जो डूबा सो पार हुआ|
इश्क हुआ तो हर शै में
उसका ही दीदार हुआ|
'इश्क', भला ये रोग है क्या
जो समझा, बीमार हुआ |
काम का था "विक्रम" भी कभी
इश्क़ हुआ, बेकार हुआ|
(विक्रम साहब से निवेदन है कि आप अशआर को और सुधारें क्योकि अभी बहुत गुंजाईश बची है)
विक्रम जी!
कहना चाहूँगा कि आपका शे'र-
/यह कैसा व्यापार हुआ-
दुश्मन सारा बाज़ार हुआ-/
यदि इसे इस तरह लिखा जाए-
/यह कैसा व्यापार हुआ-
दुश्मन अब बाज़ार हुआ-/
तो इसकी बह्र २२२२ २२२ होगी, न कि २२२२ २११२. (यहाँ र(१)+हु(१) अर्थात दो लघु मिलकर एक दीर्घ (२) हो जाएगा)
वैसे मैं भी कोई 'ग़ज़ल-विशेषज्ञ' नहीं. आपकी तरह ही सीखने के प्रारम्भिक दौर में हूँ. :)
आप प्रयास जारी रखें. सफलता अवश्य मिलेगी.
जय हो!
bahut achchhi koshish ki hai aapne. bs ye rachna ghazal nahi bn payi hai lekin mujhe pura wishwas hai ki aap is kala me jald hi mahir ho jayenge. jo kuchh bhi aapne kaha hai bahut achchha lga mujhe|
badhai
स्वागत है विक्रम जी, धैर्य, अनुशासन और लगन की आवश्यकता है, कुछ भी कठिन नहीं है |
आदरणीय सलिल जी, मेरी रचना पर आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए धन्यवाद...
आपके द्वारा बताई गयी सभी बातों को नोट कर लिया है....ग़ज़ल को पुनः लिखने का प्रयास कर रहा हूँ |
बहर का गणित तनिक मुश्किल है किन्तु सरस्वती मैया की कृपा रही तो जल्दी ही सीखने का प्रयास करूंगा |
श्री गणेश बागी जी आपकी हौसला अफजाई और प्रेम का शुक्रिया...मतले पर आपकी नज़र के लिए आभार |
बाहर २२२२ २११२ के आधार पर ग़ज़ल को कहने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया है |
आदरणीय अभिनव जी एवं विवेक मिश्र जी .....शुक्रिया॥:)
/इश्क़ अजब ही नदी है साहिब
यहाँ जो डूबा सो पार हुआ|/
आपके इस शे'र पर, कुछ महीने पहले रिलीज हुई फिल्म 'आशाएँ' के गीत की दो पंक्तियाँ याद आ गयीं-
"जो बेखौफ डूबा, वही तो पहुँच पाया पार..
यादों के नाज़ुक परों पे चला आया प्यार..$$"
शुरुआती दौर में मात्राओं की गलतियाँ होना लाजिमी है. अरुण जी और आचार्य जी के विचारों से पूर्ण सहमत हूँ- "खुद गुनगुना कर पंक्तियों का वज़न संतुलित रखने का प्रयास करें".
आदरणीय श्री विक्रम जी ग़ज़ल लेखन लोकप्रिय होते हुए भी ग़ज़लगो के लिए आसान कला नहीं है | मैं भी आज तक इसके गणित को नहीं समझ सका | फिर भी सीखने का क्रम जारी रखें और ओ बी ओ इसके लिए उत्तम मंच है | ग़ज़ल की कक्षा और अन्य पेज देखें लाभ होगा | तब तक खुद गुनगुना कर पंक्तियों का वज़न संतुलित रखने का प्रयास करें | ग़ज़ल का कथ्य बढ़िया है उसके लिए बधाई स्वीकारें !!
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