आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से प्रभावित होकर मैंने भी छन्न पकैया में कुछ लिखने का प्रयास किया है. मेरी मूल रचना में कुछ कमियाँ थी जो योगराज जी ने सुधारी, योगराज सर आपका बहोत बहोत शुक्रिया. वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
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छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी,
कहने को युवराज है, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई
कुर्सी पे हाकिम जो बैठा , शुतुरमुर्ग है भाई ||२||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया , आँखों पे हैं चश्मे
पुत्र मोह में पुत्री मारे , कितनी घटिया रस्में ||३||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया , मिलें कंधो से कंधे
छूत अछूत हैं बीती बातें, सब उसके ही बन्दे ||४||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया, बच्चे खेल न पाते
बड्डपन की दीवारों ने हरसू , बाँट दिए अहाते ||५||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया, भट्टी तपता सोना
मेरी माँ घर मेरे आई, रोशन कोना-कोना ||६||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया, निश्चित बुढ़ापा आना
जोशे जवानी में तुम न, बजुर्गो की हसी उड़ना||७||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया, मस्त कोलावेरी गाना
कानो ने हो सुना अगर तो , तय होठो पे आना ||८||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया, जहा दीपिका जाए
छोटा माल्या आगे पीछे, लट्टू होता जाए ||९||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया, गम ही हिस्से आता
चेहरे के सब हाव भाव ही, स्पर्श मेरा ले जाता ||१०||
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: शशिप्रकाश सैनी
Comment
सैनी साहब आपने छन् पकैया विधा को एक नया आयाम दिया है, रचना में कथ्य बहुत ही उच्चे दर्जे की है, सन्देश भी है, व्यंग भी है, कटाक्ष भी है और शिक्षा भी, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर,
आगे भी आपकी रचनाएँ और अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों का स्वागत रहेगा |
सराहना हेतु आभार आदरणीय अरुण जी , योगराज जी
आप लोगो के सानिध्य में अभी बहुत कुछ सीखना है
Waah bahut khoob shashi prakash ji viseh kar KOLAVERI & DEEPIKA wala charan saamyik aur badhiya ban pada hai hardik badhai aapko !!
भाई शशिप्रकाश सैनी जी, आनंद आ गया आपकी छन्न पकय्यावली पढ़ कर. यूं तो सभी छंद एक से बढ़कर एक हैं, मगर निम्लिखित छंद ने तो दिल ही जीत लिया:
छन्न पकैया, छन्न पकैया, भट्टी तपता सोना
मेरी माँ घर मेरे आई, रोशन कोना-कोना ||६||
वाह वाह वाह, क्या कमाल की और पवित्र भावना है. छन्न पकय्या के सफ़र में मेरा हमसफ़र बनने के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई.
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