नाशाद मेरा मिहिर तो जिंदगी वफात है
साँसों के गिर्दाब में इस रूह की निजात है l
साहिर है तेरी कलम में कुछ कमाल का
जैसे खून में भरा हो कुछ रंग गुलाल का l
हर्फों में छुपा रखी है सदियों की बेबसी
तेरे चेहरे पे अब देखती हूँ ना कोई हँसी l
बातों में बेरुखाई अब होती है इस कदर
बेजार सी जिंदगी जैसे बन गई हो जहर l
तासीर न कम होती है होंठों को भींचकर
या बेसाख्ता बहते हुये अश्कों से सींचकर l
अकेले रहने का तुम्हें बहुत ही शौक था
फिर तन्हाई से क्यों होने लगा खौफ था l
कलम में भी तुम्हारी कुछ जरूर खास है
कैसा अजाब है कि न वो अब इखलास है l
मसाफत तो थी मगर इबादत में थी वफ़ा
अब इबारत-ए-तकदीर से ही हो गई जफा l
तुम्हारी नजरें भी लगतीं हैं खौफ से भरी
जैसे गम भरी जिंदगी अब हो वहाँ ठहरी l
इक कसक सी अक्सर सफे पे उंडेल कर
गुम जाते हो तुम कहीं अँधेरों में डूब कर l
नाशाद मेरा मिहिर तो जिंदगी वफात है
साँसों के गिर्दाब में इस रूह की निजात है l
-शन्नो अग्रवाल
Comment
सौरभ जी एवं गणेश, बहुत-बहुत धन्यबाद.
बढिया कहा है आपने, शन्नोजी. बधाई स्वीकारें.
शन्नो दीदी सुन्दर ख्याल की रचना हेतु दाद कुबूल करे |
अरुण जी, आशीष जी एवं ब्रिजभूषण जी, गजल पर आप सबके प्रसंशनीय शब्दों व हौसला अफजाई का बहुत-बहुत शुक्रिया.
बातों में बेरुखाई अब होती है इस कदर
बेजार सी जिंदगी जैसे बन गई हो जहर l..bahut khub ,,,bahut sundar gazl aadrniy sanno ji .
बहुत सुन्दर आदरणीया शन्नो जी शानदार कलाम !! हार्दिक बधाई !!!
राजकुमारी जी, गजल पसंद करने का आपका दिली शुक्रिया.
bahut umda ghazal.
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