प्रथम पुष्प अर्पित तुमको, मसलो या श्रृंगार करो,
आया तेरे द्वार प्रभु, मेरा बेड़ा पार करो ,
चाहत थी जीवन की मेरी, दुखियों का दर्द उधार लूं
उजड़ चुके है जिनके घर, उनको एक नव संसार दूं
दामिन दमकी जला आशियाँ, ऐसी मची तबाही,
रही अधूरी मेरी तमन्ना, ऐसी आंधी है आई,
छाया तम है जीवन में, आशा की किरण कोई नहीं,
सर्वस्व समर्पित चरनन मां, जीवन में कुछ शेष नहीं,
श्रद्धा सुमन अर्पित तुमको, मन उपवन क्यूँ खाली,
हरा भरा रखना डाली को, इस जीवन का तू माली |
(संशोधित)
Comment
//श्रद्धा सुमन अर्पित तुमको मन उपवन क्यूँ खाली
हरा भरा रखना डाली को इस जीवन का तू माली//
सुन्दर पक्तियां , प्रभु को अर्पित यह प्रथम पुष्प बहुत ही बढ़िया है, भावनाओं को बहुत ही करीने से समर्पित किया गया है, प्रवाह में कही कही अटकाव है, कुल मिलाकर अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकार करें मान्यवर |
आदरणीय कुशवाहा जी सुन्दर प्रेममयी भावों से सजी रचना पर बधाई|
बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना है आदरणीय प्रदीप सिंह कुशवाहा जी - यदि थोड़ी सा परिश्रम ओर होता तो ये द्विपदियाँ सुन्दर दोहों का रूप ले सकती थी. बहरहाल ओबीओ पर प्रथम रचना पोस्ट करने हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करें.
आपकी प्रथम रचना को मेरा नमन.
चाहत थी मेरी जीवन की दुखियों का दर्द उधार लूं
संवेदना को आत्मसात करती रचना प्रदीप सर बधाई स्वीकार करें
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