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प्रथम पुष्प अर्पित तुमको, मसलो या श्रृंगार करो,
आया तेरे द्वार प्रभु, मेरा बेड़ा पार करो ,

चाहत थी जीवन की मेरी, दुखियों का दर्द उधार लूं
उजड़ चुके है जिनके घर, उनको एक नव संसार दूं

दामिन दमकी जला आशियाँ, ऐसी मची तबाही,
रही अधूरी मेरी तमन्ना, ऐसी आंधी है आई,

छाया तम है जीवन में, आशा की किरण कोई नहीं,
सर्वस्व समर्पित चरनन मां, जीवन में कुछ शेष नहीं,

श्रद्धा सुमन अर्पित तुमको, मन उपवन क्यूँ खाली,
हरा भरा रखना डाली को, इस जीवन का तू माली |

(संशोधित)

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on March 3, 2012 at 9:48pm
आदरणीय सर
प्रथम पुष्प के लिए...शुभकामना..और बधाई......पर हमारे प्रदीप सर इतने आशावादी और उत्साही है..... की .कोई भी रोता हुआ भी हँस दे, आपके हास्य-व्यंग की तो कोई तुलना ही नहीं है.....फिर आज मुझे प्रथम पुष्प मुरझाया सा क्यों लगा....ये आपकी .....प्रवृति से अलग क्यूँ..है..... आपका मन खाली क्यों ........???????
 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 3, 2012 at 9:30pm

//श्रद्धा सुमन अर्पित तुमको मन उपवन क्यूँ खाली  
हरा भरा रखना डाली को इस जीवन का तू  माली//


सुन्दर पक्तियां , प्रभु को अर्पित यह प्रथम पुष्प बहुत ही बढ़िया है, भावनाओं को बहुत ही करीने से समर्पित किया गया है, प्रवाह में कही कही अटकाव है, कुल मिलाकर अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकार करें मान्यवर |

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 4:10pm

आदरणीय कुशवाहा जी सुन्दर प्रेममयी भावों से सजी रचना पर बधाई|


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2012 at 4:00pm

बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना है आदरणीय प्रदीप सिंह कुशवाहा जी - यदि थोड़ी सा परिश्रम ओर होता तो ये द्विपदियाँ सुन्दर दोहों का रूप ले सकती थी. बहरहाल ओबीओ पर प्रथम रचना पोस्ट करने हेतु मेरी दिली बधाई स्वीकार करें.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 3, 2012 at 3:56pm

आपकी प्रथम रचना को मेरा नमन.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 3:31pm

चाहत  थी मेरी जीवन की दुखियों का दर्द उधार लूं  

उजड़ चुके है जिनके घर उनको एक  नया संसार दूं  

संवेदना को आत्मसात करती रचना प्रदीप सर बधाई स्वीकार करें

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