सुर्ख इबारत बयाँ करेगी – मैंने जीना चाहा था,
चाक कलेजे के ज़ख्मों को मैंने सीना चाहा था;
जो भी आया उसने ही कुछ दुखते छाले फोड़ दिए,
वहशत की आग बुझाने को मेरे सब सपने तोड़ दिए;
तेरे आँचल के धागों से रिसना ढकना चाहा था,
सुर्ख इबारत बयाँ करेगी- मैंने जीना चाहा था |
अपनी ही रुसवाई पर, हम तो हँसते रहे सदा,
गम को गले लगा के रोये, खुशियाँ करते रहे विदा;
गम बाजारू हों ना जाएँ, आँसू पीना चाहा था,
सुर्ख इबारत बयाँ करेगी – मैंने जीना चाहा था |
तुझको देखा, तुझको चाहा, मैंने तुझको जाना था,
दो पल जी लूँ तेरा बनकर, और तो ना कुछ पाना था;
कुछ सूखे ज़ख्मों का मैंने दर्द भुलाना चाहा था,
सुर्ख इबारत बयाँ करेगी – मैंने जीना चाहा था |
तेरे होठों की जुम्बिश को मैंने माथे पर रखा,
तेरी कही-अनकही बातों को पल-पल पहचाना था;
मैं ना तुझसे दगा करूँगा, यकीं दिलाना चाहा था,
सुर्ख इबारत बयाँ करेगी – मैंने जीना चाहा था |
बस तेरे इक पल की खातिर मैंने दर्द हज़ार जिए,
प्यास बुझाने की खातिर अपने आँसू दिन रात पिए;
ना कोई दरकार और थी, ना कुछ लेना चाहा था,
सुर्ख इबारत बयान करेगी – मैंने जीना चाहा था |
Comment
स्नेही श्री कुशवाहा जी, सादर अभिवादन, आपका प्रेम, प्रोत्साहन और अपनापन पाकर हृदय प्रफुल्लित हो उठा|
हार्दिक धन्यवाद !
चाक कलेजे के ज़ख्मों को मैंने सीना चाहा था;
जो भी आया उसने ही कुछ दुखते छाले फोड़ दिए,
snehi chaatak ji. sadar abhivadan. jo pida aapko logon se hai vahi aaj mujhe ho gayi. kafi dinon se aapki post ki pratiksha thi. aaj ye post mili to vahi pida mujhe bhi ho gayi. mesage kar diya hota. main bhi anand leta. apna hi samjhen mujhe. yogya nahi hoon to kya hua saath to hun. rachna , bhav, prastutikaran sundar. aur mera aap ko bahut bahut pyar. badhai.
स्नेही अग्रज, सादर अभिवादन, पंक्तियों पर आपकी अनमोल प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद!
स्नेही सौरभ जी, सादर अभिवादन, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद!
महिमा जी, पंक्तियों पर आपकी राय जानकर् अतीव प्रसन्नता का अनुभव हुआ|
बहुत बहुत शुक्रिया !
स्नेही योगराज जी, सादर अभिवादन, पंक्तिया आपको पसंद आईं ये जानकर् बहुत खुशी हुई|
प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद!
दिव्या जी, प्रोत्साहन का तहे-दिल से शुक्रिया !
व्यथित आत्म की चेतनता फिर सजीव बन आई ,
यह सुर्ख इबारत बयां है करती जीवन की गहराई ,,.......................................प्रिय अनुज :) जय भारत
सूर्ख़ इबारत ! वाह !! बहुत कुछ कह गयी ! बहुत कुछ सुन लिया. अच्छी गेय रचना.
तेरे होठों की जुम्बिश को मैंने माथे पर रखा के लिये हृदय से बधाई स्वीकार करें.
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