For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरे शिकवा नहीं कोई,शिकायत क्या करू तुझसे?

वली है तू सनम मेरा,इबादत की इजाजत दे||१||


बहुत अब देख ली दुनिया,नहीं अब देखना कुछ भी|

लहर उठती नहीं कोई कयामत की इजाजत दे||२||


मुझे खामोश करने पर अमादा है सियासत क्यों?

मेरा दिल भी धडकता है,मुहब्बत की इजाजत दे||३||


मेरी आँखों में पानी की नहीं बूंदे, है चिंगारी|

हुए हैं लोग मुर्दा तो फिर आतस की इजाजत दे||४||


चला था कारवां लेकर मेरा रहबर ही रहजन था|

नहीं है मानना अब कुछ तू आफत की इजाजत दे||५||


मेरे भी पास खंजर है, तेरे भी पास खंजर है,

जो लड़ना है तो खुल के आ,अदावत की इजाजत दे||६||


बहकते है बशर क्या खुद फ़रिश्ते नौजवानी में|

गिला है क्यों तुझे मुझसे,सदाकत की इजाजत दे||७||

Views: 761

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 14, 2012 at 5:24pm

प्रिय अभिनव भाई....

आपकी टिप्पडी मेरे लिए खासा महत्वपूर्ण है..और दमदार शब्दों में उत्साहवर्धन करने के लिए आपको सादर अभिवादन|वंदे मातरम|

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 14, 2012 at 5:22pm

आदरणीय महिमा जी ...टिप्पडी का हार्दिक आभार

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 14, 2012 at 5:21pm

प्रिय श्री राकेश भाई...आपकी उत्साहजनक टिप्पडी का ह्रदय से आभारी हूँ

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 14, 2012 at 5:05pm

आदरणीय गणेश जी शेर ४ में कोई माकूल काफिया नहीं बन पाया तो भी तो भी कथ्य को ध्यान में रखते हुए मैंने कोई तब्दीली नहीं की आगे से कोई और गजल लिखने से पहले इस बात का ध्यान रखूँगा|आपके मार्गदर्शन का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ|


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 14, 2012 at 2:05pm

मतला के साथ यदि कहते और शेर ४ में काफिया पर ध्यान दे तो एक अच्छी ग़ज़ल कह सकते थे मनोज जी, कथ्य बहुत ही खुबसूरत है, बधाई स्वीकार करे ।

Comment by Abhinav Arun on March 14, 2012 at 1:45pm

क्या कहने श्री मनोज जी बहुत शानदार अशआर साझा किये आपने |

मुझे खामोश करने पर अमादा है सियासत क्यों?

मेरा दिल भी धडकता है,मुहब्बत की इजाजत दे||३||

क्या बात है दिल की गहराई में उतर जाने वाले खयालात |

मेरे भी पास खंजर है, तेरे भी पास खंजर है,

जो लड़ना है तो खुल के आ,अदावत की इजाजत दे||६||

हार्दिक बधाई आपको !!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 14, 2012 at 12:14pm

लाजवाब मनोज भाई.. ये चंद अशआर नहीं एक सम्पूर्ण ग़ज़ल है.. बधाई...

Comment by MAHIMA SHREE on March 14, 2012 at 11:06am
अरे शिकवा नहीं कोई,शिकायत क्या करू तुझसे?
वली है तू सनम मेरा,इबादत की इजाजत दे||१||
मयंक जी नमस्कार ,
बहुत बढ़िया ......बधाई...
Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 14, 2012 at 10:55am

Simply Superb. Vah! badhaiyaan.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service