हाँ मेरे पास कोई सहारा नहीं,
मगर मैं बेबस बेचारा नहीं;
*
सोचता हूँ कुछ मैं भी कहूँ अब
मगर ज़ुबान को ये गवारा नहीं;
*
वो जिसे हम अपना समझते रहे,
आज जाना के वो हमारा नहीं;
*
थोड़ी सी ज़मीन मुट्ठी भर आसमान,
आज करने को मेरे ये भी गुज़ारा नहीं;
*
ज़िंदगी यूँ तो अमावस सी है मेरी,
पर फ़लक में कोई भी सितारा नहीं;
*
हाँ भटकता हूँ मैं दरबदर माना यूँ ही
पर मैं सड़कों का कोई आवारा नहीं;
*
जाते-जाते लगा कोई बुलाता है 'वाहिद',
फिर के देखा तो किसी ने पुकारा नहीं;
Comment
सराहना के लिए हार्दिक आभारी हूँ त्रिपाठी जी| सादर,
स्नेही चातक जी,
प्रोत्साहन के लिए लिए आभारी हूँ| हालाँकि ग़ज़ल में शिल्प के स्तर पर कुछ कमियां रह गयी हैं फिर आपने इसे सराहा इसके लिए धन्यवाद|
स्नेही वाहिद जी, सादर अभिवादन, हर शेर पर दिल से बस एक ही आवाज़ उठी- बहुत खूब! बहुत खूब!
आदरणीय अभिनव जी,
आप जैसे गुणीजनों से प्रशंसा मिलती है तो और भी अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है| हार्दिक आभार आपका,
सराहना के लिए बहुत शुक्रिया राकेश भाई.. :-)
जाते-जाते लगा कोई बुलाता है 'वाहिद',
फिर के देखा तो किसी ने पुकारा नहीं
क्या बात है वाहिद जी बहुत नाज़ुक सी बात किस नाज़ुकी से कही आपने वाह वाह !!
हाँ मेरे पास कोई सहारा नहीं,
मगर मैं बेबस बेचारा नहीं;
सोचता हूँ कुछ मैं भी कहूँ अब
मगर ज़ुबान को ये गवारा नहीं;
bahut sundar panktiyaan ban padi hain, Wahid bhai, bahut bahut badhai.
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