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resptd..Admin,कृपया तिलक जी द्वारा दीये गए बहुमूल्य सुझावों को मेरे इस ब्लॉग में incorporate कर मुझे अनुग्रहित करें.
1..
प्यार की मीठी बातों क़े माने ग़ज़ल,..
इश्क करते है (करता है) जो वो ही जाने ग़ज़ल.
('करते हैं' बहुवचन है और 'जाने ग़ज़ल' एकवचन इसलिये सुधार आवश्यक है)
2..
तहजीब का जब से हिस्सा बनी,...(जब से (स) तहजीब का एक हिस्सा बनी)
लोग घर में लगे है सजाने ग़ज़ल....
बस उसे ही नसीब है अल्लाह का फ़ज़ल,.....रविन्द्र नाथ जी शुक्रिया.
Saurabh ji,
आदरणीय तिलकराज जी ने विशद चर्चा की है जो सभी के लिये अनुकरणीय है.
is me do ray nahi hai.
shukriya Saurabh ji.
"आशा है अन्यथा नहीं लेंगे।"
vaah kya khoob kahi hai ghazal...daad kabool karen.
भाई अविनाशजी, आपकी ग़ज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ.
आदरणीय तिलकराज जी ने विशद चर्चा की है जो सभी के लिये अनुकरणीय है. सादर.
आपकी इस ग़ज़ल के अरकान हैं: फ़ायलुन्, फ़ायलुन्, फ़ायलुन्, फ़ायलुन् या 212, 212, 212, 212
कुछ मामूली सुझाव हैं:
प्यार की मीठी बातों क़े माने ग़ज़ल,..
इश्क करते है (करता है) जो वो ही जाने ग़ज़ल.
('करते हैं' बहुवचन है और 'जाने ग़ज़ल' एकवचन इसलिये सुधार आवश्यक है)
**
गोया गागर में सागर समाया करे,...
चंद लफ़्ज़ों में कहती फ़साने ग़ज़ल....
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प्यार पर ही टिका है ये सारा जहाँ,...
बात सबको लगी है बताने ग़ज़ल.....
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रौब अपना जमाने यहाँ बज़्म में,..
छेड़ देते है यूँ ही सयाने ग़ज़ल.....
**
चांदनी रात में देख उनकी अदा,..,
दिल मचल क़े लगा गुनगुनाने ग़ज़ल....
**
तहजीब का जब से हिस्सा बनी,...(जब से (स) तहजीब का एक हिस्सा बनी)
लोग घर में लगे है सजाने ग़ज़ल....
बाकी अशआर में जहॉं आपने वज़्न गिराया है ठीक है लेकिन तहजीब के 'जी' में वज़्न गिराना संभव नहीं है इसलिये इस शब्द को ऐसी जगह रखना पड़ेगा जहॉं बह्र में समा जाये। बदले रूप में 'से' गिराकर 'स' पढ़ा जा सकता है।
आशा है अन्यथा नहीं लेंगे।
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