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संस्कारित माँ-बाप की,मिलती जिनको सीख.
बाँधा दोहे तीन ही, पग ज्यों लाँघे तीन
हृदय मुग्ध उद्वेलता, मन की लहरी बीन.. .
भाई अविनाश जी, आपको सादर बधाइयाँ !
आदरणीय अविनाश जी,अनुपम दोहे भ्रात|
छन्दबद्ध वाणी मधुर,पुलकित है मम गात||...dil ko chhoo gai ye bat 'mayank' ji.
sabhi shubh-cintako....Rajesh kumari mam,Minu jha mam,Ravindra Nath Shahi sir, Sandeep Dwivedi, "Wahid Kashiwasi ' ji,आशीष यादव ji, PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA sir ji,aur मनोज कुमार सिंह 'मयंक' ji...ka hriday se aabhar.
आदरणीय अविनाश जी,अनुपम दोहे भ्रात|
छन्दबद्ध वाणी मधुर,पुलकित है मम गात||
आभार और बधाई
adarniya avinash ji sadar abhivadan, bahut kuch kah diya itne kam shabdon main badhai.
ek anurodh hai ki meri post valvale par main sabhi sathiyon se nivedan kar chuka hoon ki ye rachna kya hai, tukbandi to mere samjh se hai, log mujhse poonchte hain ki ye kya likha. bada gadbad dikh raha hai, aap bhi dekhiye kya hai. agar kuch avishkar hua hai to patent kara loon.
बहुत ही अच्छे दोहे है|
बहुत ही सार्थक सुन्दर दोहे आदरणीय अविनाश जी!
जीवन की सच्चाई बयान करते दोहे अविनाश जी,बहुत सुंदर
अविनाश जी बहुत उत्तम दोहे रचे हैं तीसरे दोहे की तो बात ही क्या है अविनाश जी पहले दोहे में संस्कारित की जगह सुसंस्कृत माँ -बाप की करके देखें तो मेरे विचार से सही रहेगा अर्थ दोनों के सामान ही हैं पर शब्द सज्जा और पैमाने के द्रष्टि कोण से विचार प्रकट कर रही हूँ |
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