(ओ.बी.ओ. का अपना बैज है. ये रचना ओ.बी.ओ. गीत हेतु तैयार की है.)
भटकता फिर रहा था न जाने कब से भीड़ में एक आस लिए
मुट्ठी भर पा जाऊं धरा औ ज्ञान की एक बूँद का विश्वास लिए
मिली जानकारी जब कि ओ.बी.ओ. एक ऐसा आधार है
गुनी जनों के सानिध्य मिले तो अवश्य तेरा बेडा पार है
गजल छन्द और कई भाषाओँ के हैं विधान यहाँ ,
कहानी और कविता का मिलता है ऐसा ज्ञान कहाँ
नए पुराने और धर्म जाति का न कोई भेद यहाँ
वो जगह बताएं मिलता हो सबको ऐसा सम्मान कहाँ
ओ.बी.ओ. परिवार से पाया इतना स्नेह और प्यार है
न जाऊं कहीं और अब में बैरागी मन हो गया रागी
प्रीतम और रवि के अनोखे प्यार का रोपा ये पौधा है
कामना खिला रहे उपवन सदा स्थापना हेतु बधाई बागी
आओ सब मिल कर अलख जगाये हम
साहित्य स्नेह की पावन गंगा बहायें हम
कई भाषाओँ और विधा में पारंगत गुरु विद्या दान करें
माँ भारती , सरस्वती संग ओ.बी.ओ. का गुण गान करें.
जय ओ.बी.ओ., जय हिंद , वन्दे मातरम्
Comment
धन्यवाद समर्थन हेतु, आदरणीय उमा शंकर जी. सादर
बिलकुल सही
हमारा भी समर्थन है आपके साथ... कुशवाहा जी
जय ओ.बी.ओ.
स्नेही अश्विनी, जी सादर, भाव प्रकट किये. शिल्प नहीं आता. ओ.बी.ओ. गीत भी देख लीजिये , इसी के ऊपर है. मेरा उत्साह बढेगा. धन्यवाद.
आदरणीय प्रदीप जी सादर अभिवादन ,,
गजल छन्द और कई भाषाओँ के हैं विधान यहाँ ,
कहानी और कविता का मिलता है ऐसा ज्ञान कहाँ ,,,......सादर आपकी रचनाएँ खुद समग्रता की प्रतीक होती हैं अति सुंदर और सार्थक मंच के प्रति आपका हार्दिक उद्गार आपकी प्रतिबद्धता को उजागर कर रहा है ......जय भारत
स्नेही वाहिद जी, सादर
बढ़िया प्रयास आदरणीय प्रदीप जी!
SNEHI MINU JI, PRASANN RAHEN, SUNDAR SUNDAR RACHNA BHEJEN. DHANYVAD.
बहुत सुंदर कुशवाहा जी
AADARNIYA, SINGH SAHAB JI. SADAR ABHIVADAN.
मुझे नहीं लगता कि अन्यथा कुछ लिख कर आपका सम्मान करें!
आओ सब मिल कर अलख जगाये हम
साहित्य स्नेह की पावन गंगा बहायें हम
कई भाषाओँ और विधा में पारंगत गुरु विद्या दान करें
माँ भारती , सरस्वती संग ओ.बी.ओ. का गुण गान करें.
जय ओ.बी.ओ., जय हिंद , वन्दे मातरम्
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