तनहा खड़ा
एक पेड़ हूँ मैं
बरसों पहले
नन्हा सा प्यारा बच्चा
पास के जंगल से
मोहित हो मेरे रूप पर
अपनी नन्ही बाँहों में भर
घर मुझे ले आया था
कोमल हाथों से अपने
आंगन में मुझे बसाया था
सोते जागते उठते बैठते
पास मेरे मंडराता था
सुबह शाम पानी देकर
मन ही मन इठलाता था
बच्चे खेलें साथ मिलकर
उनसे मुझे बचाता था
आँगन उसका इतना बड़ा था
जैसे होता माँ का दिल
रह न जाऊं कहीं अकेला
नित नए पेड़ लगाता था
साथ -साथ हम बड़े हुए
कई साथी मुझको दिए
अपना घर परिवार बढाया
जीवन के हर सुख-दुःख में
अपना साझीदार बनाया
कल चक्र से सब बंधे हुए
समय बीता हम जुदा हुए
वो आज नहीं है
पर अभी हूँ मैं
अकेले में खड़ा
एक पेड़ हूँ मैं
Comment
धन्यवाद आदरणीय उमा शंकर जी, सादर
बहुत बढिया प्रसंग पर बढ़िया चित्रण
एक पेड़ हूँ मै ........बहुत कुछ कह गई
Waah..kitni sundar rachna ..
badhai aapko ..
बच्चे खेलें साथ मिलकर
उनसे मुझे बचाता था
आँगन उसका इतना बड़ा था
जैसे होता माँ का दिल
रह न जाऊं कहीं अकेला
नित नए पेड़ लगाता था
प्रिय कुशवाहा जी यादें मन में बस जाती हैं और दर्द छलक कर आंसुओं के रूप में ..सुन्दर रचना ....
जीवन के हर सुख-दुःख में
अपना साझीदार बनाया
कल चक्र से सब बंधे हुए
समय बीता हम जुदा हुए
snehi minu ji, sadar.
abhi dard baaki hai. agla bhag jaldi hi prastut karunga. dhanyvad.
aadarniya avinash ji, sadar abhivadan
aap jaese mahan vyaktitv ke hastakshar mile, mere man ki bagiya ke phool khile. sneh , marg darshan banaye rakhiye. dhanyavad.
adarniy manoj ji, sadar.
aapke sundar kavyatmak bhav hradya se lagaye. apka sneh man ko prafullit kar gaya. hardik abhar.
बहुत सुंदर कुशवाहा जी
दर्द को बङी कुशलता से उकेरा है आपने
अति सुंदर
वो आज नहीं है
पर अभी हूँ मैं
अकेले में खड़ा
एक पेड़ हूँ मैं ....bhai wah! Pradeep ji pedo ki vastut: yahi manodasha hai....bahut hi sateek shabd-chitr khincha hai aapane.
समय बड़ा बलवान है बंधू,समय बड़ा बलवान|
कभी जगत इसके संग चलता,कभी अकेली जान|
कभी पूजता है पत्थर को,कभी स्वयं भगवान|
कभी कभी हैवानों में भी दिखते हैं इंसान|
समय बड़ा बलवान है बंधू समय बड़ा बलवान|
आदरणीय कुशवाहा जी आपकी सुन्दर सी रचना के लिए मेरी चंद पंक्तियाँ आपको सादर समर्पित है|
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