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नीलम जी, नमस्कार,
शैलेन्द्र जी, नमस्कार,
आदरणीय राजेश कुमारी जी, सादर नमस्कार,
हम तो आज तुम्हारे चले जाने के बाद आंसू बहा कर , दो चार दिनों में तुम्हे भूल भी जायें गे..पर इस समाज का क्या करें????? कब तक गरीब बापों की अभागी लड़कियां , अपनी कमज़ोरी की सजा भुगतें गी....वो अपराध जो उन्हों ने किया ही नहीं...उस के लिए उन्हें कब तक प्रताड़ित किया जाता रहे गा????? तुम तो बच गयीं.. लेकिन जो हैं, उन का क्या होगा??????
मार्मिक ....... बेहतरीन ........... बधाई सरिता जी
तुम्हारी किलकारियां भी उस दानव को मोहित न कर सकीं...उसे एक बार भी याद न आया कि तुम उस की अपनी संतान थी...अपना खून...किस तरह तुम्हें सिगरेट से जलाने के लिए उस जानवर के हाथ उठे होंगे...
सरिता जी बधाई बहुत ही मार्मिक दिल को छू लेने वाली कहानी ..आइये अन्याय कतई बर्दाश्त न करें आवाज उठायें
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति. सरिता जी, बधाई स्वीकार करें.
संवेदना मर्म और यथार्थता से साक्षात्कार कराता आलेख , बधाई स्वीकार करें
bahut hi marmik parantu ek kadva satya ...bahut prabhaavshali kahani hai dil par aaghat karti hai.aapka obo manch par swagat ke saath hardik badhaai.
//तुम तो बच गयीं.. लेकिन जो हैं, उन का क्या होगा??????//
आह, क्या कहा जाय, मानव के भेष में दानव आज भी समाज के अंग है, जिसे पहचानने में भूल हो जाया करती है, बहुत ही मर्मस्पर्शी आलेख है सरिता जी, आभार आपका इसे ओ बी ओ के मंच पर रखने के लिए |
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