गोरी के आंचल में
झिलमिल सितारे हैं
चंदा को सूरज भी
छिप के निहारे है
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रेत के समंदर में
बूँद एक उतरी तो
ललचाई नजरों ने
सोख लिया प्यारी को
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उदय अंत में त्रिशंकु -
बन ! मै लटकता हूँ
राहु -केतु से कटे भी
दंभ लिए फिरता हूँ
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चार दिन की जिन्दगी है
चार पल की यारी है
चाँद भी खिसक गया
रात अंधियारी हैं
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कल अंडा था
बच्चा बनकर
चीं चीं चूं चूं बोला
खेला खाया
उड़ा साथ कुछ
मै रह गया अकेला
Comment
प्रिय बंधुगण आप सब का बहुत बहुत आभार ..अपना स्नेह और सुझाव देते रहें .... जय श्री राधे
चार दिन की जिन्दगी है
चार पल की यारी है
चाँद भी खिसक गया
रात अंधियारी हैं
गोरी के आंचल में
झिलमिल सितारे हैं
चंदा को सूरज भी
छिप के निहारे है
kitni khubsurti se varnan kiya hai, aadarniya bhramar ji badhai, saadar abhivadan ke saath.
प्रिय और आदरणीय मित्र गण आप सब का हार्दिक आभार -अपना स्नेह बनाये रखें
लाख अपराध कर ले
चाहिए फिर भी
सभ्य समाज
ये दुनिया की रस्मे ...................
चार दिन की जिन्दगी है
चार पल की यारी है
चाँद भी खिसक गया
रात अंधियारी हैं
सुबह भी होगी .. सुन्दर .
चार दिन की जिन्दगी है
चार पल की यारी है
चाँद भी खिसक गया
रात अंधियारी हैं
-------------------------बहुत सुन्दर |
रेत के समंदर में
बूँद एक उतरी तो
ललचाई नजरों ने
सोख लिया प्यारी को
-----bahut sundar kshanikayen likhi hain ek se badhkar ek.
चार दिन की जिन्दगी है
चार पल की यारी है
चाँद भी खिसक गया
रात अंधियारी हैं
shri भ्रमर जी बहुत खूबसूरत रचना हार्दिक बधाई आपको !!
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