मै ६ दिसंबर हूँ
मै ११ सितम्बर हूँ
२६ नवम्बर हूँ
आंसुओं का
महासागर हूँ मै !
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गोल-गोल
बूँद भरी
पूर्ण हो
निकल पड़ी
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अंगूठा चूसते-चूसते
वो इतना "बड़ा" हो गया
की माँ बाप का कद
इतना "बड़ा" हो गया
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पूर्णिमा की रात
आई-गई नहीं
कि अमावस
चल पड़ा
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कल एक "लाल" चिराग ने
रोशन कर
माँ -बाप का नाम
सूरज को
दिया दिखा दिया
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एक अजनवी से
पलकें झपकते ही
दिल की
हर बात हो गयी
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आँखों का तारा
जो टूटा तो
खुद ही नहीं
उसको भी ले डूबा
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तनहाइयों ने काट-काट
अंतस के खोंडर में
घोंसला लगा लिया
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चींटियों ने
बोझ ले
चलना सिखा दिया
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प्रेम की चासनी में
मिठास ही मिठास
डूबता चला गया
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’ ५
कुल्लू यच पी
६.५.२०१२ -५.५६-६.२० पूर्वाह्न
Comment
चींटियों ने
बोझ ले
चलना सिखा दिया
वाह श्री सुरेन्द्र जी छोटी छोटी पंक्तियों में आपने बड़ी बात कह दी है सड़के जाऊं इस खुबसूरत रचना पर हार्दिक बधाई आपको !!
प्रिय मित्रों अपना स्नेह यों ही बनाये रखें और प्रोत्साहन देते रहें ताकि कुछ सिखा पढ़ा जाए कुछ नयी विधाएं --- आभार आप सब का -भ्रमर ५
आदरणीय भ्रमर जी , सादर.
तनहाइयों ने काट-काट
अंतस के खोंडर में
घोंसला लगा लिया
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चींटियों ने
बोझ ले
चलना सिखा दिया.....बहुत भाव पूर्ण क्षणिकाएं ये दो तो बहुत ही उत्तम लगी बधाई भ्रमर जी
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