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Comment
ये कथा अस्वाभाविक नहीं है....पटना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्रीय गणित के लेक्चरर थे गोरख बाबू (अगर मैं गलत नहीं हूँ ) UK से गोल्ड मैडल जीतने के बाद बिहार आये थे और किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे....उनकी धर्मपत्नी ने सारे रिसर्च पेपर को चुल्हे में जला दिया कि पता नहीं क्या क्या कबाड भरे रहते हैं.....
aadarniya deepak ji yatharth chitran hetu badhai.
कथा आज की व्यवस्था में साहित्यकारों की साख और उनके वास्तविक मूल्य को दर्शाती है हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर !!
केसरी जी कसावट तो मेरे बाद ही आएगी जब मेरा लिखा कवाड़ भी बिकेगा I योगराज जी हिन्दोस्तानी (पहाड़ी कुल्लुवी ) ही हो सकता है I आशीष जी सीमा जी बागी जी,पाण्डेय जी ,प्रताप जी राजेश जी आप सबका हार्दिक धन्यवाद कहानी पसंद नापसंद करने के लिए I
मै जहाँ तक समझ सका, आपने आज के समाज पर व्यंग लिखा है जो साहित्य से पूरी तरह दूर होता जा रहा है। लेकिन ये परम्परा देखी जाय तो बहुत पुरानी है, क्योंकि प्रेमचंद जैसे सुप्रसिद्ध कहानीकार एवँ उपन्यासकार को भी गरीबी झेलनी पड़ी।
चलो इसी बहाने इन बेचारों का दाहसंस्कार भी हो जाएगा
अगर यह बात रचनाओं के लिए कही गयी है तो बड़ा करारा हथौड़ा मारा है... वैसे बात असपष्ट है
बुनावट को और कसा जाये तो और मजा आये ...
कहानी तो एक तरफ टिपण्णी पढ़कर ही मजा आ रहा है और सीमा जी का ??????संवाद तो बस !!और सौरभ जी की टिपण्णी को समझने की कोशिश कब से कर रही हूँ !!
बूड़ल बँस कबीर के जामल पूत कमाल.. . जे इहवाँ त लिखइलको ले बेकारथ.. !
सब कुछ तो ठीक लगा पर मंगल सूत्र का नकली चांदी का होना नहीं जमा |
चलो इसी बहाने इन बेचारों का दाहसंस्कार भी हो जाएगा
कागज़ का या इन पर लिखने वाले का ??????
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