मैं कौन हूँ ?
अनंत आकाश या अन्तरिक्ष का मौन हूँ
धरती का श्रृंगार हूँ पाताल का आधार हूँ
पर्वतों में हूँ शिखर पाषाण में भगवान हूँ
नदियों का पाट हूँ निर्बाध उसका बहाव हूँ
झरने सा पतन मेरा झर झर आवाज हूँ
पक्षियों का कलरव हूँ उनकी ऊँची उड़ान हूँ
समुद्र की लहर हूँ भीतरी ठहराव हूँ
मस्त शीतल पवन हूँ या उठता तूफ़ान हूँ
रंगों में रंग हूँ फूलता वसंत हूँ
सीमा में बंटी धरती, सिरमोर भारत हूँ
रंग हूँ रूप हूँ धरती का भूप हूँ
धनवानों का वैबभ हूँ निर्धन की भूख हूँ
नारी की कोमलता हूँ ममता की मूरत हूँ
दुखियों का दर्द हूँ शिशु की मुस्कान हूँ
पावस, ग्रीष्म शिशिर हूँ ऋतुओं में ऋतुराज हूँ
सूरज का ताप हूँ चांदनी की शीतलता हूँ
पानी का बुलबुला हूँ बिछी घास पर ओस हूँ
मंदिरों की आरती मस्जिद की आजान हूँ
नारी की शक्ति हूँ कवि की अभिव्यक्ति हूँ
कल्पना से परे जो ईशवर की भक्ति हूँ
शब्दों में शब्द हूँ ध्वनि में निशब्द हूँ
आचरण में पशु हूँ धरती का इंसान हूँ
प्रश्नों में प्रश्न हूँ अनुत्तरित उत्तर हूँ
खोजता हर जगह मृग कस्तूरी की तरह
वो है मेरे अन्दर फिर भी अनजान हूँ
कैसे पहचानूँ की मैं कौन हूँ
इसीलिए आज मैं मौन हूँ
Comment
iish putri, sasneh
lagta hai, bhookhe marne ka irada bana liya hai. kya main kavi ban jaaon. mere pass to purani rachna ek bhi nahi bachi. nasht ho gayin thi varshon pahle. dhanyvaad. ye gyan o.b.o. main chapne vali laghukatha se prapt ho raha hai. dhanyvaad.
snehi mahima ji, saadar.
dekho aap jhooti tarif nahi karna varna main aapko sahi salah nahi de sakoonga. dhanyvaad.
snehi mridu ji, saadar.
aapko pasand aayi, mehnat safal hui. dhanyvaad.
आदरणीय कुशवाहा जी,नमस्कार,
अपने आप को पहचानने की कोशिस करती बहुत ही सुन्दर कृति, हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय कुशवाहा सर
aadarniya singh sahab ji, saadar abhivadan.
aap agar maun rahenge to main pahchanunga kaese
sneh dete rahiye. dhanyavaad.
जिस दिन खुद को पाया उस दिन अपना पता भूल गया ………बस यही खोज जीवन को वास्तविक अर्थ देतीहै
aadarniya vandana ji, saadar
aapki uprokt pankti evam bhav pasand aaye. dhanyvaad.
aadarniya arun ji, saadar abhivadan,
aapne saraha, mujhe bahut achha laga. kin shabdon main aapka shukriya ada karoon. dhanyvaad.
आचरण में पशु हूँ धरती का इंसान हूँ
प्रश्नों में प्रश्न हूँ अनुत्तरित उत्तर हूँ
खोजता हर जगह मृग कस्तूरी की तरह
वो है मेरे अन्दर फिर भी अनजान हूँ
कैसे पहचानूँ की मैं कौन हूँ
कुछ नहीं याद मुझे
आखिर मैं कौन हूँ इसलिए मैं मौन हूँ!
प्रणाम महोदय!
इसीलिए आज मैं मौन हूँ
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