आंदोलित विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने अपनी मांगे सरकार से मनवाने हेतु व्यस्ततम चौराहे को मानव श्रृंखला बना कर घेर दिये थे, मेरे नेर्तित्व में भी एक संगठन नारेबाजी और रास्ता अवरुद्ध करने मे संलग्न था, भीड़ में कुछ मरीजों के परिजन अपनी गाड़ियों को आगे जाने देने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे, राधे बाबू जोर जोर से सभी को निर्देशित कर रहे थे कि एक व्यक्ति को भी आगे नहीं जाने देना है, चाहे कुछ हों जाए | एकाएक राधे बाबू का स्वर बदला और कहने लगे कि जाने दो भाई मरीजों की गाड़ियों को जाने दो | मैं आश्चर्य से पूछ बैठा "अरे राधे बाबू ये क्या हो गया आपको,अभी तो आप कह रहे थे कि किसी को आगे नहीं जाने देना है चाहे जो हो जाए और अभी जाने देने को कह रहे है"
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बेहद सुदर और सन्देश परक कथानक, हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय कुशवाहा सर
आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, खुबसूरत कथानक पर बधाई स्वीकार करें | सुन्दर प्रस्तुति है |
आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन
आदरणीय सिंह साहब जी, सादर अभिवादन .
धन्यवाद aadarniya भ्रमर जी, सादर सराहना हेतु. सारा श्रेय aadarniya बागी जी को जाता है.
प्रदीप कुमार कुशवाह जी सच में ऐसे लोग गिरगिट ही होते हैं जो बहुत जहरीले भी होते हैं उनको केवल अपनों की ही चिंता रहती है |बहुत शिक्षाप्रद लघुकथा बधाई
आदरणीय महोदय, सादर अभिवादन!
आपको याद होगा कुछ साल पहले की घटना है - दानापुर में ऐसे ही बंद समर्थकों ने एक गरीब आदमी को, जो अपनी सायकिल पर बिठाकर प्रसव पीड़ा पीड़ित अपनी पत्नी को अस्पताल ले जाना चाह रहा था, पर बंद समर्थकों ने उसे जाने नहीं दिया था और वो बेचारी सबके सामने सड़क पर ही बच्चा पैदा करने को मजबूर हुई थी. तब मैंने लिखा था-
बंद बंद और कितनी बंदें, बंद में हम हो जाते अंधे
अम्बुलेंस वे कहाँ से लाते, सायकिल पर ही प्रसव कराते
बंदी वाले मीडिया वाले, देख देख कर हैं इतराते!
यहाँ तो राधे बाबु थे. वहाँ कोई कृष्ण नहीं आये थे!
और मैं क्या कहूँ आपने अच्छा दृष्टान्त प्रस्तुत किया है! आभार!
जाने दो भाई मरीजों की गाड़ियों को जाने दो ..... "उस भीड़ में मेरा भाई भी है जो पिता जी को डाक्टर के पास ले जा रहा है"
पहले तो रहस्यमय बना रहा की लोग बदल रहे हैं ......फिर माजरा अपने मेरे अपने समझ में आया काश लोग सब को अपना मान लें
आदरणीय प्रदीप जी सुन्दर सन्देश देता ये लघु लेख बड़ा वृहद है .......जय श्री राधे --भ्रमर ५
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