एक नयी दुनिया
एक नयी दुनिया देखी है … अन्तः मन की आँखों से
जिसमे कोई रंग नहीं हैं , पर सारे रंगों से सुन्दर ..
जिसमे कोई कशिश नहीं है , है वो जैसे शांत समुन्दर ..
मै उस दुनिया मे बसती हूँ , है वो समाई मेरे भीतर .
उसका कोई अंत नहीं है , है वो एक अनंत सा अम्बर ..
न है वो सूरज से रोशन , न है रात वहां अंधेरी ..
एक उजाले सी उज्वल है , हर पल जैसे सुबह सवेरी..
ना है कोई नीर की बदली , ना है कोई पंछी-परिंदा ..
दूर दूर तक ना ही दिखती , कोई परछाई , कोई बाशिंदा ..
एक रेत जैसा मरुधर है , है जिस पर शीतल सी छाया ..
न कोई जीव न पौधा कोई , जीवन सारा मुझ मे ही समाया ..
न मौसम आते जाते हैं , न ही सर्द -गर्म राते हैं ..
हर लम्हा मदहोशी सी है , एक सुन्दर ख़ामोशी सी है ..
न है हवा का झोंका कोई , पर हर पल सहलाती ठंडक ..
न है जलधर झरना कोई , पर न कोई प्यास वहां पर ..
न कोई आवाज़ - ना आहट , न कोई जज़्बात – ना चाहत ..
हर पल खुद से साथ है खुद का , हर पल है वो साथ वहां पर ..
ऐसी ही दुनिया देखी है , अन्तः मन की आखों से
Comment
Heartfelt thanks,
ASHISH YADAV JI, for catiching it in an instant that this poetry is not any imagination, but a result of flashed vision from the meditaive depths.
Resp.Rajesh Kumari Ji for appreciating my effort of rhyming writting
RESP. Jawahar Lal Ji and Resp . Pradeep Kushwaha Ji for appreciating the expression.
koi kasht nahi, sundar dunia. nayi dunia vah nikalti hai. badhai.
डॉ. प्राची जी, बहुत सुन्दर! बहुत सुन्दर! बहुत सुन्दर! बहुत सुन्दर! बहुत सुन्दर!
ऐसा ही अगर हम सब देखने लगें तो फिर किस बात का रोना!
रोशन हो जाय यह जिन्दगी का आंगन बाकी न रहे कोई कोना!
बहुत सुन्दर रचना प्राची लय बध का प्रयास अच्छा किया है बधाई
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