For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उसी फानूस ने ही दीप ये बुझाया दोस्तों

मनाने का हुनर हमको कभी न आया दोस्तों
बड़ी मगरूर थी वो मैं समझ न पाया दोस्तों

दिखे नादान सा लेकिन खबर सभी की है उसे
जिसे सबने सता के आदमी बनाया दोस्तों


गर्दिशों से मिटा जिसके ख्वाब महलों के रहे
  उजालों की ख्वाहिस में झोपड़ी जलाया दोस्तों

बुरा कितना रहा हो आदमी जमाने में मगर
जनाजा चार कांधो ने वही उठाया दोस्तों

तडपता वो रहा जिसके लिये जिगर को थाम के
उसी ने तोड़ के वादे उसे सताया दोस्तों

हवाएँ रोक जिसने रात भर बिखेरी रौशनी
उसी फानूस ने ही दीप ये बुझाया दोस्तों


संदीप कुमार पटेल "दीप"

Views: 512

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 12, 2012 at 8:32pm

gazal ke ek ek sher mein, bade hi khubsurat vichaar piroye hai sandeep bhai... wah wah

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 12, 2012 at 5:09pm

aapka bahut bahut aabhar Nilansh ji .........tahe dil se shukriya aapka

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 12, 2012 at 5:08pm
tahe dil se shukriya aapka संदीप कौशिक 'राही अंजान' bhai......aabhar aapka
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 12, 2012 at 5:06pm
bahut bahut dhnyvaad aapka rajesh kumari ji ............bahut bahut aabhar
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 12, 2012 at 5:04pm
bahut bahut aabhar aapka Roshni Dhir ji ........hriday se dhanyvaad
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 12, 2012 at 5:03pm
bahut bahut shukriya aapka MAHIMA SHREE ji aapka sadar aabhar
Comment by Nilansh on May 12, 2012 at 11:36am

दिखे नादान सा लेकिन खबर सभी की है उसे
जिसे सबने सता के आदमी बनाया दोस्तों


bahut khoobsoorat ghazal sandeep ji


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 11, 2012 at 10:15pm

हवाएँ रोक जिसने रात भर बिखेरी रौशनी 
उसी फानूस ने ही दीप ये बुझाया दोस्तों.....vaah ...vaah kya baat hai .bahut sundar

Comment by Roshni Dhir on May 11, 2012 at 9:11pm

संदीप जी

हवाएँ रोक जिसने रात भर बिखेरी रौशनी 
उसी फानूस ने ही दीप ये बुझाया दोस्तों..

बहुत accha likha apne 

Comment by MAHIMA SHREE on May 11, 2012 at 9:01pm

गर्दिशों से मिटा जिसके ख्वाब महलों के रहे
  उजालों की ख्वाहिस में झोपड़ी जलाया दोस्तों

 
तडपता वो रहा जिसके लिये जिगर को थाम के
उसी ने तोड़ के वादे उसे सताया दोस्तों

बहुत बढ़िया ... संदीप जी बधाई स्वीकार करें


कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
54 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
2 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
15 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service