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माँ गंगा की दुर्दशा का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है अग्रज प्रदीप सिंह कुशवाहा जी. क्या गंगा को माँ कहने वाले हम भारतीय इतने असंवेदनशील और स्वार्थी हो गए हैं कि हमें सच्चाई नज़र ही नहीं आती. मेरा अंतर्मन ये सोच सोच कर ही भयभीत हो रहा है कि भारतवर्ष का क्या होगा अगर गंगा ही न बची तो. इस बेहद सारगर्भित कविता पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
mahimamyi
sunder rachna
behad sundar ..................jai ganga maiya ki
har har gange
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