जो इश्क कर लिया हर्फों में नजाकत आ गई
यार दीवानगी से थोड़ी शरारत आ गई
ये नया दौर है इसमें जो लगा उनसे जिगर
चोट दिल पे लगी तो हमको मुहब्बत आ गई
बदलता रोज है आलम मगर जो बदला नहीं
साथ चलता रहा उसको तो अदावत आ गई
चार चांटे लगे वो फिर भी खडा झुकता गया
लोग कहने लगे की इसको शराफत आ गई
दर बदर ठोकरें ही खाता रहा जिसके लिये
आज उनकी निगाहों में ही हकारत आ गई
खेलना खूब सीखा उनसे मगर आया नहीं
तोड़ के दिल खुदी का इसमें महारत आ गई
नाम से बैठते गददी में मुफ्त की शोहरत
बाप के नाम से बच्चों को वजारत आ गई
दीप बाज़ार में दिल औ जिस्म बिकने जो लगा
इश्क बिकने लगा उसमे भी तिजारत आ गई
Comment
भाई संदीप पटेल जी, बहुत बढ़िया भावपूर्ण कलाम है आपका जिसके लिए आपको दिल से बधाई देता हूँ, कथ्य उत्तम है, बस थोडा सा शिल्प पर और ध्यान देने की ज़रुरत है. प्रयासरत एवं सलग्न रहे, आपकी लेखनी बता रही है कि आपका भविष्य बहुत ही उज्जवल है।
bahut bahut shukriya aapka @डॉ. सूर्या बाली "सूरज" ji .................aapki pratikriya paake utsaahit hun ......saadar aabhar
संदीप जी भावों से परिपूर्ण रचना मंच पर शेयर करने लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! आपको बहुत बहुत बधाई !
aapki har rachna me sirkat aur un par praykut pratikriya ek dam sateek hoti hai ......meri rachna aapko pasand aayi mera likhna safal ho gaya @rajesh kumari aapka bahut bahut dhanyvaad aur aabhar
aapka bahut bahut dhanyvaad @SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" ji ......aabhari hun ...aapki is pratikriya se man prafullit hua ...
is haushlaafajaai ke liye aapka tahe dil se shukriya @AjAy Kumar Bohat ji .....saadar aabhar
vaah ..umda ghazal
bahut khoob sandeep ji
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