जहां सुन्दर परियां रहती हों
जहां निर्मल नदियाँ बहती हों
जहां दिलों कि खिड़की खुली-खुली
जहां सुगंध पवन में घुली- घुली
जहां खुशियाँ हंसती हो हरदम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
जहां दरख़्त खड़े हों बड़े-बड़े
हर शाख पे झूले पड़े -पड़े
जहां संस्कृतियों का वास हो
जहां कुटिलता का ह्रास हो
कोई ऐसा तरु उगाये हम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
जहां भ्रष्टाचार का नाम ना हो
जहां बेईमानी का काम ना हो
जहां तन- मन के कपडे उजलें हों
जहां स्वस्थ अशआर की ग़ज़लें हों
कोई निर्धन हों ना कोई गम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
जहां भाईचारे की खाद डले
जहां माटी से सोना निकले
जहां श्रम का फल दिखाई दे
जहां कर्म संगीत सुनाई दे
आ ऐसी फसल उगाये हम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
जहां अपराधो का डंक ना हों
जहां राजा हों कोई रंक ना हों
जहां पुष्प खिले कांटें ना खिले
जहां मीत मिले दुश्मन ना मिले
ऐसा गुलशन महकाएं हम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
**********
Comment
प्रदीप कुमार कुशवाह जी बहुत -बहुत हार्दिक आभार
सौरभ जी आपकी टिपण्णी सर आँखों पर मेरी कविता को सराहा बहुत बहुत आभार
aao milke banayen aesa jahan
tha kabhi bharat desh mahan
loota inko gaddaron ne
ab har kadam pe jindagi ka imtihan.
badhai, aadarniya rajesh kumari ji. saadar
आपकी कोमल सी आशा को दम मिले और आपका नीड़ बन कर खड़ा हो. आपकी इस कविता के नेपथ्य से अमर-गीत ’आ चल के तुझे मैं लेके चलूँ..’ बरबस याद आता रहा. बधाई और शुभेच्छाएँ.
योगी सारस्वत जी हार्दिक आभारी हूँ आपके प्यारे से कमेन्ट के लिए
जहां भ्रष्टाचार का नाम ना हो
जहां बेईमानी का काम ना हो
जहां तन- मन के कपडे उजलें हों
जहां स्वस्थ अशआर की ग़ज़लें हों
कोई निर्धन हों ना कोई गम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
बहुत खूबसूरत कल्पना आदरणीय राजेश कुमारी जी ! हर मन की यही तो आवाज़ होती है , दूर गगन की छांव में , एक प्यारा सा घर हो अपना ! बहुत सुन्दर भाव
रेखा जी आपकी प्रोत्साहन पूर्ण टिपण्णी के लिए हार्दिक आभार
जहां राजा हों कोई रंक ना हों
जहां पुष्प खिले कांटें ना खिले
जहां मीत मिले दुश्मन ना मिले
ऐसा गुलशन महकाएं हम bahut badhiya ,badhaai svikaar kare
महिमा जी हार्दिक आभार आपका
शायर राज बाजपाई जी मंत्र मुग्ध तो आपकी टिपण्णी ने कर दिया एक लेखक को और क्या चाहिए
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