जहां सुन्दर परियां रहती हों
जहां निर्मल नदियाँ बहती हों
जहां दिलों कि खिड़की खुली-खुली
जहां सुगंध पवन में घुली- घुली
जहां खुशियाँ हंसती हो हरदम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
जहां दरख़्त खड़े हों बड़े-बड़े
हर शाख पे झूले पड़े -पड़े
जहां संस्कृतियों का वास हो
जहां कुटिलता का ह्रास हो
कोई ऐसा तरु उगाये हम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
जहां भ्रष्टाचार का नाम ना हो
जहां बेईमानी का काम ना हो
जहां तन- मन के कपडे उजलें हों
जहां स्वस्थ अशआर की ग़ज़लें हों
कोई निर्धन हों ना कोई गम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
जहां भाईचारे की खाद डले
जहां माटी से सोना निकले
जहां श्रम का फल दिखाई दे
जहां कर्म संगीत सुनाई दे
आ ऐसी फसल उगाये हम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
जहां अपराधो का डंक ना हों
जहां राजा हों कोई रंक ना हों
जहां पुष्प खिले कांटें ना खिले
जहां मीत मिले दुश्मन ना मिले
ऐसा गुलशन महकाएं हम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
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Comment
राजेश कुमारी जी इस सुंदर अभिव्यक्ति को आपने इस मंच पे रखा बहुत अच्छा लगा॥वास्तव में ऐसे ही संसार की जरूरत है आज, जैसा की इस रचना के माध्यम से चाहत की गयी है !! बहुत बहुत बधाई !
bahut undar bhaavon se saji rachna badhai ho aapko
प्राची जी आपकी प्यारी सी टिपण्णी सर आँखों पर
जहां सुन्दर परियां रहती हों
जहां निर्मल नदियाँ बहती हों
जहां दिलों कि खिड़की खुली-खुली
जहां सुगंध पवन में घुली- घुली
जहां खुशियाँ हंसती हो हरदम
चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम
हार्दिक बधाई इस ख़ूबसूरती से भी खूबसूरत रचना के लिए..
शरीफ अहमद कादरी जी तहे दिल से शुक्रिया आपकी सकारात्मक सोच के लिए आभार
bahut achchi racna hai rajesh ji badhai sweekar karein or fir jis rachna par yograj sir mohar laga dein wo to waqai kabile kubool hiti hai
आपकी टिपण्णी सर आँखों पर योगराज जी मेरी सोच और कथन पर आपके हस्ताक्षर हो गए ...
आपकी इस बुलंद सोच और मासूम सी ख्वाहिशों को मेरा सलाम. अपनी तमन्नायों के इस खूबसूरत दस्तावेज़ पर मेरे भी दस्तखत ले लें राजेश कुमारी जी. इस सार्थक कथन के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
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