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"|| "शुद्धगा छंद" ||" 

(२८ मात्रा "१ २ २ २   १ २ २ २   १ २ २ २   १ २ २ २ ")
------------------------------------------------------------------------
यहाँ पर प्रेम पूजा प्रेमियों की जानता हूँ मैं
जहाँ पर है सखी भगवान जैसी मानता हूँ मैं
मिले जब नैन उनके नैन से तो धन्य होते वो
पुजारी प्रेम में डूबे सभी  पहचानता हूँ मैं

युगों से है चली जो प्रेम की ये रीत है प्यारे
ह्रदय को हार जाना ही ह्रदय की जीत है प्यारे
सुखों में साथ देते सब  दुखों में छोड़ देते हैं
दुखो में जो तुम्हारे साथ वो मनमीत है प्यारे

किया है रास जब जब भी मिले है कृष्ण राधा से
बताओ ये मुझे कब कब रुका है प्रेम बाधा से
सभी से प्रेम करने को अभी मोहन न बन जाना 
नहीं था प्रेम उनका
कम न मीरा से न राधा से

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Comment

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Comment by chandan rai on June 3, 2012 at 4:26pm
संदीप जी ,
किया है रास जब जब भी मिले है कृष्ण राधा से
बताओ ये मुझे कब कब रुका है प्रेम बाधा से
सभी से प्रेम करने को अभी मोहन न बन जाना
नहीं था प्रेम उनका कम न मीरा से न राधा से

बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ
Comment by Er. Ambarish Srivastava on May 30, 2012 at 11:45am

भाई संदीप जी आपने बहुत ही खूबसूरत मुक्तक कहे हैं | ये सभी एक मतला व एक शेर को मिला कर बने हैं! साथ साथ काफिया व रदीफ का निर्वहन सलीके से भी हुआ है जिसके लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें !

इसे विधाता या शुद्धगा छंद भी कहते हैं

इसकी बंदिश इस प्रकार से है

(यगण +गुरु ) x ४

अर्थात

यमातागा यमातागा यमातागा यमातागा

इसके साथ-साथ तीसरी पंक्ति भी स्वतंत्र न होकर काफिया व रदीफ का निर्वहन करती है

यह 'बहर-ए-हज़ज़ मुसम्मन सालिम' से मेल खाता हुआ छंद है 

मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन

१२२२      १२२२       १२२२      १२२२

इसकी पहली आठवीं तथा पंद्रहवीं मात्राएँ सदा लघु रहती हैं !

सस्नेह

Comment by UMASHANKER MISHRA on May 28, 2012 at 12:24am

सभी से प्रेम करने को अभी मोहन न बन जाना 
नहीं था प्रेम उनका
कम न मीरा से न राधा से

पहली बार शुद्धगा छंद पढ़ा और समझा बहुत बढ़िया लगी बधाई आपको हर एक पक्तिं लाजवाब है

Comment by Yogi Saraswat on May 22, 2012 at 2:42pm

युगों से है चली जो प्रेम की ये रीत है प्यारे
ह्रदय को हार जाना ही ह्रदय की जीत है प्यारे
सुखों में साथ देते सब  दुखों में छोड़ देते हैं
दुखो में जो तुम्हारे साथ वो मनमीत है प्यारे

बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ संदीप जी । बिलकुल सही कहा है जो दुख में साथ है वही वास्तविक मित्र है। बहुत बहुत बधाइयाँ !!

Comment by आशीष यादव on May 22, 2012 at 11:21am

अति सुन्दर सर, बहुत अच्छी है यह रचना। खास बात की आपने छ्न्द का नाम लिख दिया जिससे हमे भी जानकारी हो जाय।
सुन्दर एवँ गहरे भाव भरे हैं।


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Comment by rajesh kumari on May 22, 2012 at 9:25am

संदीप कुमार पटेल जी छंद विद्या में बाँध कर बहुत अच्छी तुकांत  कविता  रची है आपने अच्छा सन्देश भी दिया है ...बधाई 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 21, 2012 at 11:24pm

युगों से है चली जो प्रेम की ये रीत है प्यारे
ह्रदय को हार जाना ही ह्रदय की जीत है प्यारे
सुखों में साथ देते सब  दुखों में छोड़ देते हैं
दुखो में जो तुम्हारे साथ वो मनमीत है प्यारे

बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ संदीप जी । बिलकुल सही कहा है जो दुख में साथ है वही वास्तविक मित्र है। बहुत बहुत बधाइयाँ !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 21, 2012 at 11:06pm

युगों से है चली जो प्रेम की ये रीत है प्यारे 
ह्रदय को हार जाना ही ह्रदय की जीत है प्यारे 
सुखों में साथ देते सब  दुखों में छोड़ देते हैं 
दुखो में जो तुम्हारे साथ वो मनमीत है प्यारे

संदीप जी बहुत सुन्दर  लयबद्ध  रचना  ...प्यारा सन्देश ....कारगर है   ..आभार . -भ्रमर ५ 

Comment by Rekha Joshi on May 21, 2012 at 9:54pm

ati sundr bhaav Sandeep ji ,badhai .

Comment by MAHIMA SHREE on May 21, 2012 at 9:32pm

बहुत ही सुंदर अभिवयक्ति संदीप जी बधाई आपको

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