"|| "शुद्धगा छंद" ||"
(२८ मात्रा "१ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २ २ २ ")
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यहाँ पर प्रेम पूजा प्रेमियों की जानता हूँ मैं
जहाँ पर है सखी भगवान जैसी मानता हूँ मैं
मिले जब नैन उनके नैन से तो धन्य होते वो
पुजारी प्रेम में डूबे सभी पहचानता हूँ मैं
युगों से है चली जो प्रेम की ये रीत है प्यारे
ह्रदय को हार जाना ही ह्रदय की जीत है प्यारे
सुखों में साथ देते सब दुखों में छोड़ देते हैं
दुखो में जो तुम्हारे साथ वो मनमीत है प्यारे
किया है रास जब जब भी मिले है कृष्ण राधा से
बताओ ये मुझे कब कब रुका है प्रेम बाधा से
सभी से प्रेम करने को अभी मोहन न बन जाना
नहीं था प्रेम उनका कम न मीरा से न राधा से
Comment
भाई संदीप जी आपने बहुत ही खूबसूरत मुक्तक कहे हैं | ये सभी एक मतला व एक शेर को मिला कर बने हैं! साथ साथ काफिया व रदीफ का निर्वहन सलीके से भी हुआ है जिसके लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें !
इसे विधाता या शुद्धगा छंद भी कहते हैं
इसकी बंदिश इस प्रकार से है
(यगण +गुरु ) x ४
अर्थात
यमातागा यमातागा यमातागा यमातागा
इसके साथ-साथ तीसरी पंक्ति भी स्वतंत्र न होकर काफिया व रदीफ का निर्वहन करती है
यह 'बहर-ए-हज़ज़ मुसम्मन सालिम' से मेल खाता हुआ छंद है
मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
इसकी पहली आठवीं तथा पंद्रहवीं मात्राएँ सदा लघु रहती हैं !
सस्नेह
सभी से प्रेम करने को अभी मोहन न बन जाना
नहीं था प्रेम उनका कम न मीरा से न राधा से
पहली बार शुद्धगा छंद पढ़ा और समझा बहुत बढ़िया लगी बधाई आपको हर एक पक्तिं लाजवाब है
युगों से है चली जो प्रेम की ये रीत है प्यारे
ह्रदय को हार जाना ही ह्रदय की जीत है प्यारे
सुखों में साथ देते सब दुखों में छोड़ देते हैं
दुखो में जो तुम्हारे साथ वो मनमीत है प्यारे
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ संदीप जी । बिलकुल सही कहा है जो दुख में साथ है वही वास्तविक मित्र है। बहुत बहुत बधाइयाँ !!
अति सुन्दर सर, बहुत अच्छी है यह रचना। खास बात की आपने छ्न्द का नाम लिख दिया जिससे हमे भी जानकारी हो जाय।
सुन्दर एवँ गहरे भाव भरे हैं।
संदीप कुमार पटेल जी छंद विद्या में बाँध कर बहुत अच्छी तुकांत कविता रची है आपने अच्छा सन्देश भी दिया है ...बधाई
युगों से है चली जो प्रेम की ये रीत है प्यारे
ह्रदय को हार जाना ही ह्रदय की जीत है प्यारे
सुखों में साथ देते सब दुखों में छोड़ देते हैं
दुखो में जो तुम्हारे साथ वो मनमीत है प्यारे॥
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ संदीप जी । बिलकुल सही कहा है जो दुख में साथ है वही वास्तविक मित्र है। बहुत बहुत बधाइयाँ !!
युगों से है चली जो प्रेम की ये रीत है प्यारे
ह्रदय को हार जाना ही ह्रदय की जीत है प्यारे
सुखों में साथ देते सब दुखों में छोड़ देते हैं
दुखो में जो तुम्हारे साथ वो मनमीत है प्यारे
संदीप जी बहुत सुन्दर लयबद्ध रचना ...प्यारा सन्देश ....कारगर है ..आभार . -भ्रमर ५
ati sundr bhaav Sandeep ji ,badhai .
बहुत ही सुंदर अभिवयक्ति संदीप जी बधाई आपको
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