देवभूमि हिमाचल प्रदेश में एक छोटा सा गाँव सुन्नी ,हिमालय की गोद में प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर इस गाँव के भोले भाले लोग ,एक दूसरे के साथ मिलजुल कर प्यार से रहते थे | इसी गाँव की दो सहेलियाँ प्रीतो और मीता,बचपन से ले कर जवानी तक का साथ ,लेकिन आज प्रीतो गौने के बाद ,पहली बार अपने ससुराल दिल्ली जा रही थी |मीतो दूर खड़ी अपनी जान से भी प्यारी सहेली को कार में बैठते हुए देख़ रही थी ,उसके आंसू थमने का नाम ही नही ले रहे थे और यही हाल प्रीतो का भी था ,उसकी नम आँखें अपनी सहेली मीता को ढूंढ़ रही थी ,लेकिन मीता उससे आँखे चुरा रही थी ,वह अपनी सखी को बिछुड़ते हुए नही देख़ पा रही थी |प्रीतो के पीछे मुड़ते ही ,दोनों की आँखे चार हुई और भीगी आँखों से मीता ने प्रीतो को विदा किया ,प्रीतो बहुत दूर मीता को छोड़ कर चली गई |दिन ,महीने ,साल गुजर गए ,मीता का ब्याह वही उसी गाँव के एक नौजवान से हो गया ,मीता की जिंदगी खुशियों से भर गई जब उसे एक नन्हे मेहमान के आने का पता चला | उसकी खुशिया दुगनी हो गई जब उसे पता चला कि प्रीतो आ रही है |मीता ने जल्दी से अपने घर का काम खत्म किया और चल पड़ी प्रीतो से मिलने ,लेकिन यह क्या ,प्रीतो के मुरझाये हुए चेहरे को देखते ही मीता समझ गई कि प्रीतो अपने ससुराल में खुश नही है |मीता प्रीतो का हाथ पकड़ उसे खींच कर बाहर खुली वादियों में ले आई |दोनों आपस में गले मिल कर जोर जोर से रोते हुए अपने दिल के दुखड़े एक दूसरे के साथ बांटने लगी ,प्रीतो की बात सुन कर मीता अवाक खड़ी उस का मुंह देखने लगी ,ईश्वर ने प्रीतो के साथ यह कैसा अन्याय कर दिया ,क्या वह कभी भी माँ नही बन पाए गी ?उसके ससुराल वालों ने हमेशा के लिए उसे मायके भेज दिया है ,दोनों बाहर आंगन में आकर चारपाई पर बैठ गई ,सदा चहकने वाली दोनों सहेलियों के बीच आज एक लम्बी चुप्पी ने जगह ले ली ,जैसे कहने सुनने को अब कुछ भी नही रहा हो ,तभी मीता ने प्रीतो का हाथ अपने हाथ में लेते उस लम्बी चुप्पी तोड़ते हुए कहा ,''प्रीतो तुम माँ बनो गी ,मेरी कोख का बच्चा आज से तेरा हुआ ,अपने ससुराल में अभी कहलवा भेज कि तुम जल्दी ही उनको वारिस देने वाली हो ,बस मैने फैसला ले लिया ,जैसे ही बच्चा पैदा होगा तुम उसे लेकर दिल्ली चले जाना ,मेरी किस्मत में होगा तो मै फिर से माँ बन जाऊं गी ,तुम्हे मेरी कसम तुम अब कुछ नही बोलो गी ''|प्रीतो अपनी सखी की तरफ एकटक देखती रह गई ,इतना बड़ा त्याग ,''नही नही मीता ,मै ऐसा नही कर सकती ''.रुंधे गले से प्रीतो ने जवाब दिया ,लेकिन मीता ने उसकी एक नही सुनी और उसे अपनी कसम दे कर मना लिया |दिन गुजरने लगे ,माँ बनने की आस ने एक बार फिर से प्रीतो के मुरझाये चेहरे की चमक वापिस ला दी |आखिर वह दिन आ ही गया और मीता ने एक सुंदर से राजकुमार को जन्म दिया ,प्रीतो के पाँव जमीन पर टिक ही नही रहे थे ,बच्चे को अपनी गोद में ले कर वह अपने ससुराल वापिस जाए गी ,उसकी सास ,ससुर ,देवर ,पति सब कितने खुश होंगे ,इन्ही सपनो में खोयी वह मीता के पास पहुँच गई ,जैसे ही वह वहां पहुंची ,मीता की आँखों में आंसू आ गए ,दबी आवाज़ में उसने अपने नन्हे से राजकुमार को निहारते हुए उसे प्रीतो को सौपने से इनकार कर दिया |प्रीतो के सीने पर मानो किसी ने वज्रपात कर दिया हो ,आसमान से किसी ने जमीन पर झटक कर गिरा दिया हो ,अपने सीने में उफनते जज़्बात लिए वह वहां से चुपचाप चली गई ,वापिस अपने ससुराल |उसका वहां क्या हुआ किसी को कुछ नही मालूम .हाँ मीता के राजकुमार की आँखों की ज्योति किसी गलत दवा डालने के कारण हमेशा के लिए बुझ गई |यह प्रीतो के दिल से निकली आह थी ,याँ मीता दुवारा किया गया विश्वासघात |
Comment
वादा तोडना ,धोखा देना और परिणाम में नुकसान
कहानी भावना के धरातल में सही है |जज्बाती है |
बहुत बढ़िया
सौरभ जी ,सादर नमस्ते ,यही तो जिन्दगी है ,इंसान अक्सर भावनाओं में बह जाता है ,आपका आभार |
वंदना जी ,कहानी लिखते हुए मेरी भी हालत आप जैसी ही थी ,आभार |
प्रदीप जी ,सादर नमस्ते ,बिलकुल सही ,विष दे पर विशवास न दे ,|आभार |
कुछ अजीब सा कथानक लगा. दोस्ती का होना और उसका बने रहना दोनों दो बातें हैं. फिर, भावावेश में कही गयी बातों की गंभीरता क्या इतनी होती है कि कोई अपने भविष्य के पल सँवारने लगे ! दिवास्वप्न में जीना एक बात है और ठोस सच्चाई को जीना एकदम सी दूसरी बात.यह दूसरी बात ही व्यावहारिकता की कसौटी हुआ करती है.ख़ैर.
आपकी कहानी के लिये शुभकामनाएँ, रेखाजी.
आदरणीय रेखा जी, सादर
आदरणीय सूरज जी ,सादर नमस्ते ,आपने बिलकुल सही लिखा है अपने बच्चे को किसी और को देना बहुत बड़ी कुर्बानी है , लेकिन किसी को झूठी उम्मीद देना ,किसी के विशवास को चोट पहुँचाना उसके साथ विश्वासघात करना क्या ठीक है?
रेखा जी नमस्कार ! बहुत ही सुंदर एवं मार्मिक अभिव्यक्ति है लेकिन अपना बच्चा किसी को दे देना बहुत बड़ी कुर्बानी होती है जो एक सामनी व्यक्ति नहो कर सकता। इस सच्ची कहानी है के लिए आपको बहुत बहुत साधुवाद ! धन्यवाद !
वसुधा जी ,आपनेसही लिखा है अपना बच्चा किसी और को देना बहुत मुश्किल होता है ,लेकिन अपनी प्यारी सहेली भावनाओं से खेलना भी ठीक नही ,वैसे यह एक सच्ची कहानी है मैने तो बस इसे शब्दों में पिरोया है |आभार |
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है मगर अपना बच्चा किसी को देना अपनी जान देने के बराबर होता है।
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