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साहित्य साधना इष्ट आराधना
पवित्रतम ह्रदय निस्सृत पूजा है,
निर्मल निर्झर भाव सरिता ये
उद्गम अन्तः मन जिसका है,
एक अनंत सागर है यह तो
जिसकी हर एक लहर में नशा है...

जो इसकी पूजा करते हैं
अन्तः से निर्मल होते हैं,
सुरसति के आशीष में डूबे
वो सच का दर्पण होते हैं,
धन मान का लोभ न रख कर
दुर्लभ चिदानंद बसते हैं…

पर समाज की तंग हैं गलियाँ 

इन में छल और मोह बसा है,
झूठी शानो चमक में उलझ कर
साहित्य का देखो दम निकला है,
हस्त गलत साहित्य की डोरी
पथ प्रदर्शक यहाँ सुप्त खड़ा है...

कलम की ताकत बहुत बड़ी है
इसको रे लेखक पहचानो,
बस कुछ भावों की तुकबंदी
में न इसके सार को जानो,
राह कठिन है , लक्ष्य बड़ा है
अपनी ज़िम्मेदारी मानो...

नव्युदितों को राह दिखाने
तुम्हे ही आगे आना होगा,
गलत हस्त में डोर हो जब तो
लोगों को चेताना होगा,
दिशा भ्रमित हों मूल्य जहाँ भी
तुमको अलख जगाना होगा…

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Comment by Yogi Saraswat on May 31, 2012 at 4:43pm

कलम की ताकत बहुत बड़ी है
इसको रे लेखक पहचानो,
बस कुछ भावों की तुकबंदी
में न इसके सार को जानो,
राह कठिन है , लक्ष्य बड़ा है
अपनी ज़िम्मेदारी मानो

इतिहास साक्षी है ! कलम ने कई क्रांतियाँ और आन्दोलन शुरू किया और उन्हें अंजाम तक पहुँचाया है ! किन्तु आज का कलमकार ना जाने क्यों छुपा हुआ है ? बहुत सुन्दर शब्द आदरणीय डॉ. प्राची जी !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2012 at 2:58pm

जो इसकी पूजा करते हैं
अन्तः से निर्मल होते हैं,
सुरसति के आशीष में डूबे
वो सच का दर्पण होते हैं,

धन मान का लोभ न रख कर
दुर्लभ चिदानंद बसते हैं…

नव्युदितों को राह दिखाने
तुम्हे ही आगे आना होगा,
गलत हस्त में डोर हो जब तो
लोगों को चेतना होगा,
दिशा भ्रमित हों मूल्य जहाँ भी
तुमको अलख जगाना होगा…

सच कहा अलख जगाना होगा
बहुत खूब बधाई स्वीकार करें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 31, 2012 at 12:17pm
जिन्हें साहित्य का ज्ञान नहीं और साहित्य के प्रति सम्मान भी नहीं , उनके हाथों जब रचनाकारों के पथ-प्रदर्शन की ज़िम्मेदारी हो तो  साहित्य प्रेमियों के ह्रदय पर कुठाराघात सा होता है...
परन्तु, यदि कोई अवसर उनके ह्रदय में साहित्य प्रेम का बीज रोपित कर उनका नजरिया बदल सके तो वो एक उपलब्धि  बन जाता है..
आपकी टिप्पणी और सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी I

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 31, 2012 at 12:09pm

बहुत गहरे उतर कर मोती ढून्ढ लाईँ हैं आप डॉ प्राची सिंह जी. सन्देश बहुत सार्थक और स्पष्ट है, जिसके लिए आपको ह्रदय से बधाई देता हूँ.

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 31, 2012 at 11:25am

Haardik abhaar Rekha Joshi ji.

Comment by Rekha Joshi on May 31, 2012 at 10:01am

Prachi ji 

जो इसकी पूजा करते हैं 
अन्तः से निर्मल होते हैं, 
सुरसति के आशीष में डूबे 
वो सच का दर्पण होते हैं, 
धन मान का लोभ न रख कर 
दुर्लभ चिदानंद बसते हैं|sundr abivykti,badhai


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 31, 2012 at 9:40am
आदरणीय संजय मिश्रा जी, इस सृजन को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 31, 2012 at 9:39am
आदरणीय अलबेला खत्री जी, आपने अपना कीमती वक़्त इस रचना को दिया, इसके कथ्य और शिल्प को सराहा, व इसे एक सार्थक सृजन करार दिया, आपका ह्रदय से आभार. टंकण त्रुटियों को इंगित करने के लिए भी आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 31, 2012 at 9:36am
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, आपकी शुभेच्छाओं के लिए ह्रदय से बहुत बहुत आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 31, 2012 at 9:35am
आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपको यह भावाभिव्यक्ति पसंद आयी आपका ह्रदय से आभार. 

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