मेरा अंतर्विरोध ,
लिबलिबी उत्तेजित ट्रिगर दबी पिस्तौल है !
जब भी जमने लगता है प्रशस्तर ,
अहसासात की रूमानियत और इंसानियत पर,
तत्क्षण वँही ठोक देता है धांय-धांय,
ढेर कर देता है सारा व्रफुरपन मेरा अंतर्विरोध !
बदन के कुएं में जब भरने लगता है झूठ
सारी काली कमाई गंदे खून की चूस लेता है मेरा अंतर्विरोध !
भर देता है जाकर कान आईने के मेरा अंतर्विरोध ,
फिर घुसकर आईने में तडातड झापट रसीद करता है चेहरे पर ,
जैसे मल्लयुद्ध कोई,यूँ धोबी पछाड़ लगा पटक देता है मेरा अंतर्विरोध !
रात भर तब जगाए रखता है पीने को नींद नहीं देता ,
मेरे ठीक होने तक मलाल के इंजेक्शन घोंपता है मेरा अंतर्विरोध !
जब भी जमने लगती है कालिख-गलीज खोपड़ी में
सदाचार के तेज़ाब से घिस-रगड़ साफ़ करता है भेजा मेरा अंतर्विरोध !
भोंक सुआ, गरम चिमटा नासूर हो रहे बद्ख्याल पर
सारा मवाद दुर्जनता का बहा मलहम लगाता है मेरा अंतर्विरोध !
जब तलक नहीं होता क्रोध-मोह-दंभ-ईर्ष्या-द्वेश विच्छेद
मुझे शल्य सा कोंचता रहता है आत्मा का सारथी मेरा अंतर्विरोध !
मेरा अंतर्विरोध मुझे प्रयास से नपुंसक नहीं होने देता,
नहीं करने देता किस्मत को मेरे हौसलों की नसबंदी !
जब दबा होता हूँ टनों मीट्रिक हार के ढेर के नीचे,
तब भी बदन में नया फौलाद भर रहा होता है मेरा अंतर्विरोध !
हाँ मेरा दुश्मन भी है और मेरा दोस्त भी मेरा अंतर्विरोध !
Comment
अति सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकार करें चन्दन राय जी
मेरा अंतर्विरोध मुझे प्रयास से नपुंसक नहीं होने देता,
नहीं करने देता किस्मत को मेरे हौसलों की नसबंदी !
जब दबा होता हूँ टनों मीट्रिक हार के ढेर के नीचे,
तब भी बदन में नया फौलाद भर रहा होता है मेरा अंतर्विरोध !
हाँ मेरा दुश्मन भी है और मेरा दोस्त भी मेरा अंतर्विरोध !
आपके दोस्त और दुश्मन को मेरा सलाम
अपने अंतर्विरोध और उससे लड़ने , उसे चुनौती देने की हिम्मत जब आ जाती है तब आदमी , इंसान हो जाता है ! बेहतरीन प्रस्तुति , श्री चन्दन राय जी !
ऐसा जानदार अंतर्विरोध होना चाहिए इस अंतर्विरोध को भगवान् बल दे ये ताकत हमारे नेताओं में क्यूँ नहीं कहाँ गया उनका अंतर्विरोध???? ...बहरहाल बधाई कबूल कीजिये इस दमदार रचना के लिए
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