सांसे जब तक चलती हैं
तब तक चलता है
सुख- दुःख का एहसास
मान -अपमान की पीडाएं
उंच -नीच , जात -पात का भेद
सम्पन्नता -विपन्नता का आंकलन
नहीं मिलने मिलाने के उलाहने
प्रतियोगिता की अंधी दौड़
एक दुसरे को मिटा डालने का षड़यंत्र
सांसे जब तक टूटती हैं
उस क्षण को
ग्लानी से भरता है मन
और छोड़ देता है तन को
बची रह जाती है
उसकी कुछ यादें
अंततः कुछ भी नहीं बचता शेष
और फिर से शुरू हो जाती हैं
ये सारी प्रवंचनाएं
23july2008
Comment
आदरणीय प्रदीप सर, सादर प्रणाम .. आपका आशीर्वाद मिल गया , लिखना सार्थक हो गया / स्नेह बनाये रखे
आदरणीया प्राची जी .. समय देकर अपना बहुमूल्य विस्तृत प्रतिक्रिया दिया, सराहा , उत्साहवर्धन किया , उसके लिए ह्रदय से आभारी हूँ , स्नेह बनाये रखे , धन्यवाद
संदीप जी व् अरुणेन्द्र जी .. आप दोनों को धन्यवाद / सहयोग बनाये रखे
आदरणीया राजेश दी .. आपका हार्दिक आभार
mahima ji ,
सांसे जब तक टूटती हैं
उस क्षण को
ग्लानी से भरता है मन
और छोड़ देता है तन कोsundr bhaav ,badhai
बहुत खूब !
स्नेही महिमा जी, शुभाशीष
जीवन का निचोड़ चंद पंक्तियाँ में.
जीते रहो. बधाई
सांसे जब तक चलती हैं
तब तक चलता है
सुख- दुःख का एहसास
मान -अपमान की पीडाएं
उंच -नीच , जात -पात का भेद
सम्पन्नता -विपन्नता का आंकलन
नहीं मिलने मिलाने के उलाहने
प्रतियोगिता की अंधी दौड़
एक दुसरे को मिटा डालने का षड़यंत्र
आदरणीय महिमा जी , सादर नमस्कार ! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ दी हैं आपने ! इंसान जब तक जिन्दा है , ना जाने कैसे कैसे प्रपंच करता है , सांसें बंद तो सब कुछ बंद ! बेहतरीन प्रस्तुति
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