इन नैनों की खिड़की से, देखा इक योवन आला |
पग पग चल कर आई है , जैसे कोई सुरबाला ||
पुष्पलता सम तन तेरा, मुख चंदा सा उजियाला |
माथा सूरज सा दमके, आँखें लगती मधुशाला ||
निर्झर चाहत का जल हो, तुम हो अमृत सी हाला |
पीकर मन नहिं भरता है, फिर भर लेता हूँ प्याला ||
झूमूं गलियों गलियों में, जपता हूँ तेरी माला |
कोई पागल कहता है , कोई कहता मतवाला ||
सपनों की तुम रानी हो, मन है तेरा सुविशाला |
निसदिन ही तुम आती हो, हाथों में ले वरमाला ||
धीरे धीरे आकर तुम , शरमाती हो जब आला |
तुझको देखूं मैं व्याकुल, पाने तेरी करमाला ||
संदीप पटेल "दीप"
Comment
संदीप जी ,अति सुंदर प्रस्तुति,बधाई |
वाह वाह संदीप पटेल दीप जी..........आपने तो सुबह सुबह रोमेंटिक कर दिया .
सपनों की तुम रानी हो, मन है तेरा सुविशाला |
निसदिन ही तुम आती हो, हाथों में ले वरमाला ||
धीरे धीरे आकर तुम , शरमाती हो जब आला |
तुझको देखूं मैं व्याकुल, पाने तेरी करमाला ||
वाह..........आनन्द आगया .........आपका अरमान पूरा हो..जय हो !
संदीप जी आपकी इस रचना ने मन मोह लिया प्रभु आपके स्वप्न को जरूर पूरा करे (if your status is single yet)बड़े सुन्दर शब्दों ,भावों से सजी प्यारी पोस्ट .
बहुत खूब
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आदरणीय संदीप जी
वाह मधुशाला , बधाई
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