घन गरज बरस प्यासी धरती पुकारे ;
कृषक भी ताक रहे कब से ही आसमान |
मेघा टर्र-टर्र कर थकने लगे हैं जैसे ;
अब सुन ले उनकी अच्छा नहीं ये गुमान |
तुझ पर ही निर्भर खेती हमारे देश की ;
बिन तेरे हो जाएगी रूखी-सूखी सुनसान |
दे देंगी तेरी फुहारें कई लोगों को जिंदगी ;
झूम के सब करेंगे खूब तेरा गुणगान ||
Comment
waah !
bahut khoob !
घनाक्षरी में की गई प्रार्थना पूर्ण हो. सुंदर छन्द.
बहुत ही शानदार कविता, कुमार साब. बधाई हो. :)
गौरव जी ,
सुन्दर प्रस्तुति
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