रिमझिम बरस जाती हैं बूंदे
जब याद तुम्हारी आती है ।
बिन मौसम ही मेरे घर में
वो बरसात ले आती है ।
जब पड़ी मेह की बूंदे
मुस्कुराते उन फूलों पर
हर्षित फूलों पर वो बूंदे
तेरा चेहरा दिखाती है ।
नाता तो गहरा है
इन बूंदो का तुझसे
चाहे तेरी याद हो या
ये बरसात हो मुझे तो
दोनों भिगो जाती हैं ।
- दीप्ति शर्मा
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी , आपका बहुत बहुत आभार अपना आशीष यूँ ही बनाये रखियेगा
दीप्ति जी
धन्य हो दीप्ति शर्मा जी.......
बहुत अच्छी पकड़ है आपकी लेखनी पर.........
सम्वेदना का स्पन्दन भली भान्ति सुनाई देता है आपके काव्य में.........
नाता तो गहरा है
इन बूंदो का तुझसे
चाहे तेरी याद हो या
ये बरसात हो मुझे तो
दोनों भिगो जाती हैं ।
___बहुत सुन्दर.........
____बधाई !
बहुत कोमल एहसास रिम झिम की फुहारों जैसे बहुत सुन्दर
आदरणीय कुमार गौरव जी आपका बहुत आभार
आदरणीय अरुण शर्मा जी आपका बहुत आभार
अति सुन्दर...
वाह खुबसूरत
आदरणीय कवी राज बुन्देली जी आपका बहुत आभार आपको कविता पसंद आई यूँही मार्गदर्शन करते रहियेगा
कमाल का रिम-झिम है दीप्ति जी,,,,,,,,तन मन सब सराबोर हो गया पढ़ कर,,,,,वाह वाह वाह,,,,,,,,,,,,
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