कटाक्ष
हेलमेट-गुटखा संवाद....अध्याय एक प्रारंभ!!!!!!!!
-----------------------------------------------------
सुबह-सुबह हेलमेट और गुटखे की पान की टपरी पे मुलाकात हो गई.
'कैसे हो हेलमेट भाई?'..इधर-उधर आशंका भरी निगाहों से देखते हुये गुटखे ने अपना नकाब सरकते हुये पूछा.
'ठीक हूँ ' फुरसतिया अंदाज़ में मूंछों पर ताव देते हुये हेलमेट गरियाया .
'यार हमारे तो वांदे है आजकल..फिर से इन तथाकथित समाज के पैरोकारगणों ने जीना मुहाल कर दिया है'
गुटखा अपने सर पे हाँथ रख बोला.
'यार जब देखो तब चालू कर देते है और जब देखो तब बंद...जरा सोचो हमारे उन चाहने वालो का जिन्हें मुह से पिचाकरिया छोड़ने का
बचपन से शौक रहा है...बेचारे क्या करेंगे?
आजकल बच्चे के मुह में दूध की बोतल नहीं खर्रे का पाउच डाला जाता है..
महिलाओं के कोख में बच्चा और मुहँ में गुटखा होता है...
लेबर रूम मे दाखिल होने के पहले आखिरी इच्छा होती है एक अदद खर्रे की पुडिया...
यहाँ-वहां दीवारों पे जो नैसर्गिक माडर्न आर्ट की मुफ्त की प्रदर्शनी पर पहाड़ टूट गया है...
सरकारी दफ्तरों में जाते समय आदमी इन भित्ति-चित्रों के कारण एक अतिरिक्त सावधानी बरता करता था
जिससे जेब-कट आसानी से अपना काम नहीं कर पाते थे .
अब बेचारे नागरिको की सुरक्षा इन उठाईगिरों से कौन करेगा.???'
धारा प्रवाह बोला जा रहा था गुटखा.......
हूँ..हूँ..हूँ...हूँ कर के हेलमेट भी गंभीर हो गया.
उसे भी इस कभी हाँ...कभी ..ना वाली बीमारी का अच्छा-खासा अनुभव था.
'ना जाने सर की सुरक्षा के नाम पर कितनेपुलीस अधीक्षक अपने पदों की सुरक्षा करने में असमर्थ रहे थे!!
इन नए-नए नेतागिरी के कुकुर-मुत्ते उगाने वालों की तो जैसे पौ-बारह हो जाती है.
किसी बड़े दल का मुखिया बनने की यही तो नर्सरी स्कुल है..
इनके बड़े बनने के चक्कर में हम-तुम बिना वजह परेशान होते रहते है..'
हेलमेट, गुटखे की बातों के समर्थन में सर हिलाते बोला.
'अब मुझपे ऐसी पाबन्दी आई तो मै मुख-केंसर बहन को क्या मुख दिखाऊंगा!!!
सोचा था इस राखी पर उसे रिकार्ड मरीजो का तोहफा दूंगा मगर एन इस पावन त्यौहार के मुहाने पर
मरदूदों ने बंदी के बेरीकेट्स खड़े कर दिये...
क्या सोचेगी मेरी बहना???'गुटखे ने अफसोस प्रगट करते हुये कहा.
'अरे हाँ! मुझे भी याद आया जब लोगो पे मुझे पहनने की सख्ती की गई थी तो मै अपने साले 'ब्रेन हेमरेज' से कई दिन तक आँखे नहीं मिला सका था'..अपनी आपबीती सुनाते हुये हेलमेट बोला.मेरा अपने साले से वादा था कि मै उसके रास्ते में नहीं आऊंगा.अभी फ़िलहाल तो ठीक है मगर इस बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी.....!!!
'अरे! पुलिसवाला', गुटके कोसचेत करते हुये हेलमेट बोला...
'घबराओ मत दोस्त ये अपने फेवर वाला आदमी है
ऐसे ही कुछ ईमानदार लोगो के कारण मै अपने चाहने वालो से चोरी -छुपे मिल पाता हूँ"
गुटखे ने हेलमेट को आश्वस्त किया.
'स्मगलिंग जैसे पावन कार्यों में आजकल मेरी मांग जरा ज्यादा बढ़ गई है बस इसी बात का संतोष है...
अब मेरे चाहने वाले भी मेरी कद्र करने लगें है.नहीं to
पहले इन गुटखा खाने वालो के नाना चोचले थे...ये नहीं वो चाहिए...वो नहीं वो चाहिए..
मेरे अभिभावक पान-टपरी वाले परेशान थे..."
'बंद करो...बंद करो '.दूर से कुछ आवाजे आने लगी...गुटखा दुबक गया और हेलमेट ने भी अपने स्कूटर को ऐड लगे और चलता बना.......
----------------------------
कभी हेलमेट कभी गुटखा...कभी बंद कभी चालू
सी.एम. परेशान..किस- किस को संभालूं...!!!!!!!
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online