==========ग़ज़ल==============
दिलो जिगर निसार दूं है गर हसीन आपसा
किसे न चाहिए यहाँ 'प' महजबीन आपसा
बिना मिले बिना सुने दिलो के हाल जान लूं
हुनर कमाल का लिए न दूरबीन आपसा
बदल रहे अजीब रंग बात बात पर गुमा
नहीं दिखा अभी तलक तमाशबीन आपसा
कभी मिला लिए हिजाब नाग आसतीन में
करे नहीं गिला अजीज जाँनशीन आपसा
बड़ी बड़ी इमारतें गिरी तबाह हो गयी
न क्यूँ रहा वतन परस्त पेशबीन आपसा
अदा हया समेट के नज़र से तीर छोड़ता
नकाब में रखे रिवाज नाजनीन आपसा
किताब एक दो नहीं पढ़ी हज़ार "दीप" पर
न नाम ही मिला मुझे न नामचीन आपसा
संदीप पटेल "दीप"
Comment
बहुत उम्दा ग़ज़ल लिखी है संदीप जी ...वाह
वाह क्या बात है संदीप जी बहुत ही उम्दा.... एक सुंदर कृति
संदीप जी
WAAH !
आपकी रचनाए पढ कर लिखने की प्रेरणा मिलती हैं ।
एक और सुंदर रचना पर बधाई...
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